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अनिष्ट ग्रहों के कारण और निवारण


मानव जीवन पल-प्रतिपल ग्रहों से संचालित होता है और समस्त ग्रह आकाशमंडल में निरन्तर अपनी धुरी पर घूमते हुए निर्दिष्ट समय में सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं. चन्द्र से लेकर शनि पर्यन्त किसी भी ग्रह की अपनी स्वयं की किरणें या रश्मियाँ न होकर वो आत्मकारक सूर्य से प्रकाश ग्रहण करता है और फिर उसे पृथ्वी सहित आकाशमंडल में चारों ओर न्यूनाधिक रूप में फैला देता है. इस समूचे चराचर जगत में ग्रहों की रश्मियों का अभाव या अधिकता ही दुर्योग का कारण बनता है. इसलिए इन समस्त ग्रहों का उचित अनुपात ही मानव जीवन की श्रेष्ठता के लिए आवश्यक है. सूर्यादि इन नवग्रहों में से किसी एक ग्रह की दुर्बलता भी मानव जीवन की अपूर्णता ही कही जाएगी.
ग्रहों के इस उतार-चढाव को सामान्य रूप में लाने के लिए ग्रहों के निवारण एवं देवोपासना का स्वरूप यहाँ आप लोगों के कल्याण हेतु यहाँ प्रस्तुत है :--

सूर्य:- न केवल ज्योतिष अपितु सम्पूर्ण ब्राह्मंड में ही सूर्यदेव अपना सर्वोप्रमुख स्थान रखते हैं. ज्योतिषशास्त्र जहाँ ग्रहों की दृश्य-स्थिति का निर्देशक हैं, वहीं सूर्य इन समस्त ग्रहों एवं सम्पूर्ण जगत का पालनकर्ता है, जिन्हे नक्षत्रों एवं ग्रहों का राजा भी कहा जाता है. यह जीवों की आत्मा का अधिष्ठाता है. अत: व्यक्ति का आत्मबल इसी ग्रह से देखा जाता है. अगर किसी व्यक्ति का सूर्य अनिष्ट हो तो उसे जीवन में ह्रदय रोग, उदर सम्बन्धी विकार, नेत्र रोग, धन का नाश, ऋण का बोझ बढ जाना, मानहानि, अपयश, संतान सुख में कमी एवं ऎश्वर्य-नाश आदि दुष्फलों का सामना करना पडता हैं. ऎसे में व्यक्ति को सूर्य नमस्कार, सूर्य पूजा, हरिवंशपुराण आदि का पाठ करना चाहिए.

चन्द्रमा:- न केवल मनुष्य अपितु संसार के समस्त प्राणियों की देह में मन ही वह एकमात्र वस्तु है, जिसमें आगे भविष्य की सभी सम्भावनाओं के अंकुर विद्यामान रहते हैं. इसी मनतत्व का कारक ग्रह है---चन्द्रमा. कहा भी गया है कि 'चन्द्रमा मनसो जात:" अर्थात चन्द्रमा ही मन की शक्तियों का अधिष्ठाता है. अगर व्यक्ति की जन्मकुंडली में चन्द्रमा निर्बल अथवा अन्य किसी प्रकार से अनिष्ट प्रभाव में हो तो मानसिक रूप से तनाव, दुर्बल मन:स्थिति, शारीरिक एवं आर्थिक परेशानी, छाती-फेफडे संबंधी रोग-बीमारी, माता को कष्ट, सिरदर्द आदि जीवन में कष्टकारी स्थितियाँ निर्मित होती हैं. ऎसे में व्यक्ति को अपनी कुलदेवी या देवता की उपासना करनी चाहिए. नि:संदेह लाभ मिलेगा और कष्टों से मुक्ति प्राप्त होगी.

मंगल:- मंगल ग्रह ऋषि भारद्वाज कुलोत्पन्न ग्रह है, जो कि क्षत्रिय जाति, रक्तपूर्ण एवं पूर्व दिशा का अधिष्ठाता है. जिन व्यक्तियों का जन्मकुंडली में मंगल अच्छा होता है, उनका भाग्योदय 28वें वर्ष की आयु मेम आरम्भ हो जाता है. मनुष्य में विज्ञान एवं पराक्रम की अभिव्यक्ति मंगल ग्रह के फलस्वरूप ही होती है. सत्ता पलट एवं राजनेताओं की हत्या के पीछे अशुभ मंगल की बडी अहम भूमिका होती है. क्योंकि यह भाई से विरोध, अचल सम्पत्ति में विवाद, सैनिक-पुलिस कारवाई, अग्निकाँड, हिँसा, चोरी, अपराध और गुस्से का कारक ग्रह है. इससे जिगर के रोग, मधुमेह, बवासीर एवं होंठ फटना आदि स्थितियाँ भी उत्पन्न होती हैं. ऎसे में व्यक्ति को हनुमान जी की उपासना---जैसे सुन्दरकांड, हनुमान बाहुक, हनुमदस्तोत्र, हनुमान चालीसा आदि का नित्यप्रति पाठ करना चाहिए और साथ में मिष्ठान आदि प्रशाद रूप में गरीबों में बाँटते रहना चाहिए. ध्यान रहे---वह प्रशाद स्वयं न खाये.

बुध:- यह शूद्र जाति, हरितवर्ण तथा पश्चिम दिशा का स्वामी ग्रह है, जो कि शुभ होने पर जीवन के 32वें वर्ष में भाग्योदय कराता है. यह विलक्षण व्यापारी बुद्धि, शीघ्रता व हास्य-विनोद का कारक ग्रह है. अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बुध ग्रह विपरीत, अनिष्टकारक स्थिति में हो , तो पथरी, गुर्दा, स्नायु रोग अथवा दाँतों संबंधी किसी रोग-व्याधि का सामना करना पडता है. बुद्धि में भ्रम बना रहता है, स्मरण शक्ति क्षीण होने लगती है, साथ में कार्य-व्यवसाय संबंधी लिए गये महत्वपूर्ण निर्णय विपरीत सिद्ध होने लगते हैं.
ऎसे में व्यक्ति को दुर्गा सप्तशती का कवच, कीलक व अर्गला स्तोत्र का नित्य पाठ करना चाहिए. साथ में गौमाता की सेवा करते रहें.


बृहस्पति :- उत्तर दिशा का स्वामी ग्रह बृहस्पति देवताओं का गुरू है. इसकी कृपा मात्र से ही संसार को ज्ञान तथा गरिमा की प्राप्ति होती है. यह अपने तेज से समूचे संसार को चमत्कृत कर देता है. जन्मकुंडली में बृहस्पति के शुभ होने की स्थिति में यह 16वें वर्ष से ही व्यक्ति का भाग्योदय कराने लगता है. किन्तु यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में यह अशुभ अथवा निर्बल हो तो संतान सुख में कमी, गृहस्थ जीवन में व्यवधान, स्वजनों से वियोग, जीवनसाथी से तनाव एवं घर में आर्थिक विपन्नता निर्मित करता है. गौरतलब है कि तब पीलिया, एकान्तिक ज्वर, हड्डी का दर्द, पुरानी खाँसी का उभरना, दमा अथवा श्वसन संबंधी रोग-बीमारी भी प्रदान करता है.
ऎसे में व्यक्ति को हरि पूजन, हरिवंश पुराण या श्रीमदभागवत क नित्यप्रति पाठ करना चाहिए.

शुक्र :- शुक्र दैत्यों के गुरू हैं, भृगु ऋषि के पुत्र होने के कारण जिन्हे भृगुनन्दन भी कहा जाता है. वीर्यशक्ति पर शुक्र ग्रह का विशेष आधिपत्य है. यह कामसूत्र का कारक है ओर शुभ होने की स्थिति में व्यक्ति का 25वें वर्ष की आयु में भाग्योदय करा देता है. अगर जन्मकुंडली में शुक्र निर्बल अथवा अनिष्ट स्थिति में हो तो व्यक्ति को खुशी के अवसर पर गम, भूतप्रेत बाधा, शीघ्रपतन, सेक्स संबंधी परेशानी, संतान उत्पन्न करने में अक्षमता, दुर्बल-अशक्त शरीर, अतिसार, अजीर्ण, त्वचा एवं वायु विकार इत्यादि कईं तरह के कष्टों का सामना करना पडता है. इसलिए व्यक्ति को शुक्र की शुभता बनाये रखने की खातिर सदैव श्रीलक्ष्मी जी का सानिध्य प्राप्त करना चाहिए. नित्यप्रति श्रीसूक्त का पाठ करते रहें.

शनि:- पश्चिम दिशा का अधिष्ठाता शनि ग्रह सूर्य-पुत्र माना जाता है. इसके द्वारा कठिन कार्य करने की क्षमता, गम्भीरता और पारस्परिक प्रेम आदि की भावना जागृत होती है. साथ ही पति-पत्नि में मनमुटाव, गुप्त रोग, अग्निकाँड, दुर्घटना, अयोग्य संतान, आँखों में कष्ट, पेचिश, अतिसार, दाम, संग्रहणी, मूत्र विकार, जोडों घुटनों में दर्द, ह्रदय दौर्बल्य, कब्ज आदि विभिन्न प्रकार के रोगों की उत्पत्ति होती है. जन्मकुंडली में इसके शुभ होने की स्थिति में जहाँ ये 36वें वर्ष में व्यक्ति का भाग्योदय करा देता है, वहीं यदि ये निर्बल या अनिष्ट हो तो उपरोक्त वर्णित कईं तरह के दु:साध्य कष्टों का सामना करना पडता है. ऎसी स्थिति में भैरव जी की उपासना व्यक्ति के लिए अति कल्याणकारी सिद्ध होती है. नित्यप्रति संध्या समय भैरव स्तोत्र का पाठ करें एवं मद्यपान निषेध रखें तो अवश्य मनोवांछित लाभ होगा.

राहु:- राहु एक छाया ग्रह है.राहु राजनीति के क्षेत्र का सर्वोप्रमुख कार्केश ग्रह है, जो कि अशुभ प्रभावों में विशेष लाभकारी रहता है. इसके विपरीत होने की स्थिति में आकस्मिक घटना, वैराग्य, ऋण का भार चढ जाना, शत्रुतों की तरफ से पीडा-परेशानी, लडाई-झगडा, जेलयात्रा, मुकद्दमा-कोर्ट कचहरी, अपमानजन्य स्थितियाँ, मिरगी-तपेदिक-बवासीर एवं विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों का सामना करना पडता है.
 ऎसी स्थिति उत्पन होने पर व्यक्ति को सरस्वती आराधना का आश्रय लेना चाहिए. नित्यप्रति श्रीसरस्वती चालीसा का पाठ करे, साथ में कम से कम एक बार किसी गरीब कन्या के विवाह पर यथासामर्थ्य धन की मदद करे तो अशुभता को शुभता में बदलने मे देर नहीं लगेगी.

केतु:- केतु भी राहु की भान्ति ही छाया ग्रह है, जिसका प्रभाव बिल्कुल मंगल की तरह होता है. इसके निर्बल होने या दुष्प्रभाव से निगूढ विद्याओं का आत्मज्ञान होना अथवा मन में वैराग्य के भाव जागृत होना मुख्य फल है. मूर्छा, चक्कर आना, आँखों के अन्धेरा छा जाना, रीढ की हड्डी में चोट/रोग, मूत्र संबंधी विकार, ऎश्वर्य नाश अर्थात जीवन में सब कुछ पाकर एक दम से खो देना, पुत्र का दुर्व्यवहार तथा पुत्र पर संकट इत्यादि भीषण दु:खों का सामना करना पडता है.
इसके कुप्रभावों से मुक्ति प्राप्त करने हेतु व्यक्ति को एक बार जीवन में बछिया का दान अवश्य करना चाहिए. साथ में गणेश जी की उपासना करें तो कष्टों से अवश्य छुटकारा मिलेगा.