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ज्योतिष और संतान सुख

आजकल शादी-विवाह काफ़ी विलंब अर्थात बडी आयु में होने लगे हैं, क्योंकि लडका लडकी दोनों ही पहले अपने कार्य व्यवसाय में सेटलमेंट होने के पश्चात ही विवाह की तरफ़ कदम बढाते हैं. ऐसे में विवाह के पश्चात अगला कदम संतान प्राप्ति की तरफ़ होता है परंतु अक्सर कई दंपतियों को संतान प्राप्ति में स्वस्थ होने के बावजूद भी बाधाओं का सामना करना पडता है.
अगर निम्न योग किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में विद्यमान हों तो उसे हर हालत में योग्य संतान की प्राप्ति अवश्य होती है. विशेष परिस्थियों में अर्थात जैसे कि योगकारक ग्रह के नीच, कमजोर अथवा शत्रु क्षेत्री होंने पर भी कुछ सामान्य उपायों द्वारा संतान की प्राप्ति की जा सकती है.
आईये जानते हैं उन योगों के बारे में:------

1. अगर पति पत्नि दोनों की जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का आपस में भाव परिवर्तन हो, अथवा श्रेष्ठ भावों में युति हो तो सुंदर और भाग्यशाली पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होती है.

2. कुटुम्ब भाव का स्वामी अगर बलशाली होकर पंचम भाव को देखता हो अथवा पंचमेश से संबंध कारक हो रहा हो, साथ ही गुरू की भी पंचम भाव पर संपूर्ण दॄष्टि हो तो सुयोग्य पुत्र की प्राप्ति होती है.

3. पति-पत्नि दोनों की जन्मकुंडली में सप्तमेश के नवांश का अधिपति लग्नेश, कुटुम्ब भाव के स्वामी और भाग्येश इन तीनों द्वारा दृष्ट हो तो निश्चय ही पुत्र प्राप्ति होगी.

4. पति पत्नि की जन्मकुंडली में जिन महादशा-अन्तर्दशाओं में भी पंचम भाव व पंचमेश का संबंध बनेगा तब पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी इसके विपरीत जब भी एकादश भाव एवं एकादशेस का संबंध होगा उस दशा में सुंदर और सुभाग्यशालिनी कन्या की प्राप्ति होती है.

अत: विवाह पश्चात अपनी जन्मकुंडली में सन्तानोत्पत्ति हेतु अनुकूल एवं उचित समय की जानकारी अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहिये.