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भारतीय ज्योतिष और काल सर्प दोष


कालसर्प योग को समझना और उसके प्रति सजगता
सही मायनों में आज अधिकतर व्यक्ति इस योग के प्रति बेखबर हैं. जब कि कुछ के सिर इसका हौव्वा चढा हुआ है. जातक का भय तब और भी बढ जाता है, जब कोई ज्योतिषी अतिश्योक्ति से इस योग का बखान करता है. वस्तुत: यह योग विध्वंसकारी न होकर चमतकरी भी है. बस समय रहते इसका ज्ञान और उपाय करना आवश्यक है. समझदार विद्वान ज्योतिर्विद बिना अतिरिक्त लाभ उठाये यदि सही मार्गदर्शन करे तो इसका निदान अवश्य हो जाता है.

इस योग की ये विशेषता है कि कालसर्प योग में जन्म लेने वाले जातकों का जन्म निश्चित रूप से कर्म भोग के लिए ही होता है. वो आत्मा किसी विशेष उद्देश्यपूर्ति के लिए ही जन्म लेती है. ईश्वर द्वारा सूक्ष्म दिव्य-संचालन का कार्यभार सौरमंडल के इन दो ग्रहों--राहु-केतु के जिम्मे सौंपा गया है. सृष्टि में व्याप्त माया का दूसरा नाम है राहू और उससे मुक्ति अर्थात मोक्ष का नाम है केतु. राहू जहाँ माया के रूप में जगत को बाँधता हैं, वहीं केतु उस माया के बँधन से मुक्त का मार्ग दिखाता है. लेकिन कालसर्प ग्रसित जातक माया के इस बँधन में बहुत गहरे फँसा होता है. इसलिए ही कालसर्प योग पीडित जातक सामान्य व्यक्ति से कुछ अलग होते हैं. विचारों से भी, व्यक्तित्व से भी और जीवन की परिस्थितियों से भी-----पूर्णत: भिन्न.

इसके अतिरिक्त जीवन में जहाँ इस योग के अधिकाँश नकारात्मक फल भोगने पडते हैं, वहीं साथ मे जीवन के कुछ अन्य विषयों में इसके सकारात्मक फल भी प्राप्त होते हैं. मूल आधार जन्मकुंडली में राहु-केतु किस भाव में स्थित हैं एवं जन्मकुंडली अनुसार व्यक्ति के भाग्य की प्रबलता कितनी है, इस पर परिणामों की तीव्रता अवलंबित रहती है.
जन्मकुंडली के चतुर्थ, अष्टम या व्यय भाव में राहू और कुंडली में कालसर्प योग हो तो वह अधिक नकारात्मक होगा. इस योग के अधिक-से-अधिक फल राहू की महादशा या किसी अन्य ग्रह की महादशा में राहू की अन्तर्दशा अवधि में मिलेंगें. इसके अतिरिक्त राहु अशुभ गोचर भ्रमण में भी इसके दुष्परिणाम देखने को मिलते रहेंगें.

'कालसर्प योग' सकारात्मक हो तो जन्मकालीन राहु पर से गोचर के राहु के भ्रमण काल में इसके श्रेष्ठ-फलों की प्राप्ति होती है.रिलायंस इन्डस्ट्रीज के संस्थापक श्री धीरू भाई अम्बानी का जीवन इसका तगडा उदाहरण है. जीवन में राहू का समय आने पर ही धीरूभाई 'शून्य' से 'ब्राह्मण्ड' प्राप्त कर सके.

हर्षद मेहता नाम से भला कौन अपरिचित होगा. उनकी जन्मकुंडली में चतुर्थ भाव स्थित राहु नें ही उन्हे शेयर मार्किट के सिँहासन से गिराकर धूल में मिला डाला. धनु के राहु का गोचर भ्रमण आरम्भ होते ही उनके रहस्यों का पर्दाफाश हुआ और वो कानून के शिकंजे में फंसते चले गए.

भारत की कुंडली में भी कालसर्प योग है. इस 'कालसर्प योगी' भारत को स्वतन्त्रता के बाद पं. जवाहरलाल नेहरू के रूप में प्रथम प्रधान्मत्री "कलसर्प योगी" ही प्राप्त हुआ. भारत की कुंडली में विद्यमान यह योग भी अपने आप में बहुत कुछ कहता है. भ्रष्टाचार,घोटालों, लूट-खसोट, आंतकवाद, अराजकता और सामाजिक-सांस्कृतिक पतन के रूप में देश की इस वर्तमान दुर्दशा का एकमात्र कारण ये कालसर्प योग ही है.


(कालसर्प भाग..२ आगे पढें)