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नक्षत्र पति और उसका प्रभाव

चन्द्रमा का एक राशिचक्र 27 नक्षत्रों में बंटा हुआ है, इस कारण से चन्द्रमा को अपनी कक्षा में परिभ्रमण करते समय प्रत्येक नक्षत्र में से गुजरना होता है. आपके जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में गुजर रहा होगा होगा, वही आपका जन्म नक्षत्र होगा. आपके वास्तविक जन्म नक्षत्र का चरण सहित निर्धारण करने के पश्चात आपके बारे में बिल्कुल सटीक भविष्य कथन किया जा सकता है. नक्षत्र पद्धति आधारित गणना से आप जीवन के सही अवसरों को सही समय पर पहचान सकते हैं. और इसी तरह आप अपने खराब और कष्टकारक समय को जान सकते हैं. और उसका उपाय भी कर सकते हैं. आपको एक बार आपके नक्षत्रपति की सही सही जानकारी और दिशा निर्धारण हो जाये तो जीवन अत्यंत सुगम हो जाता है. आप इसके लिये हमसे संपर्क कर सकते हैं और अपने संपूर्ण जीवन चक्र का सही दिशा निर्देश प्राप्त करें.

नीचे हम क्रमश नक्षत्र, उनके स्वामी, उनकी उच्च व नीच राशि की तालिका दे रहे हैं. जिससे आप सहज ही इसका पता लगा सकेंगे.

क्रम
नक्षत्र
स्वामी
उच्च राशि
नीच राशि
1
अश्विनी
केतु
धनु (क्ष*-शु* लग्न)
वृश्चिक (ब्रा*-वै* लग्न)
मिथुन (क्ष*-शु* लग्न)
वृष  (ब्रा*-वै* लग्न)
2
भरणी
    शुक्र
मीन
कन्या
3
कृतिका
सुर्य
मेष
तुला
4
रोहिणी
चंद्र
वृष
वृश्चिक
5
मृगशिरा
मंगल
मकर
कर्क
6
आद्रा
राहु
मिथुन (क्ष*-शु* लग्न)
वृष  (ब्रा*-वै* लग्न)
धनु (क्ष*-शु* लग्न)
वृश्चिक (ब्रा*-वै* लग्न)
7
पुनर्वसु
गुरु
कर्क
मकर
8
पुष्य
शनि
तुला
मेष
9
अश्लेषा
बुध
कन्या
मीन
10
मघा
केतु
धनु (क्ष*-शु* लग्न)
वृश्चिक (ब्रा*-वै* लग्न)
मिथुन (क्ष*-शु* लग्न)
वृष  (ब्रा*-वै* लग्न)
11
पूर्वाफ़ाल्गुनी
शुक्र
मीन
कन्या
12
उत्तराफ़ाल्गुनी
सूर्य
मेष
तुला
13
हस्त
चंद्र
वृष
वृश्चिक
14
चित्रा
मंगल
मकर
कर्क
15
स्वाति
राहु
मिथुन (क्ष*-शु* लग्न)
वृष  (ब्रा*-वै* लग्न)
धनु (क्ष*-शु* लग्न)
वृश्चिक (ब्रा*-वै* लग्न)
16
विशाखा
गुरू
कर्क
मकर
17
अनुराधा
शनि
तुला
मेष
18
ज्येष्ठा
बुध
कन्या
मीन
19
मूल
केतु
धनु (क्ष*-शु* लग्न)
वृश्चिक (ब्रा*-वै* लग्न)
मिथुन (क्ष*-शु* लग्न)
वृष  (ब्रा*-वै* लग्न)
20
पूर्वाषाढा
शुक्र
मीन
कन्या
21
उत्तराषाढा
सुर्य
मेष
तुला
22
श्रवण
चंद्र
वृष
वृश्चिक
23
धनिष्टा
मंगल
मकर
कर्क
24
शतभिषा
राहु
मिथुन (क्ष*-शु* लग्न)
वृष  (ब्रा*-वै* लग्न)
धनु (क्ष*-शु* लग्न)
वृश्चिक (ब्रा*-वै* लग्न)
25
पूर्वाभाद्रा
गुरू
कर्क
मकर
26
उत्तराभाद्रा
शनि
तुला
मेष
27
रेवती
बुध
कन्या
मीन
(क्ष* = क्षत्रिय लग्न, शु* = शुद्र लग्न, ब्रा* = ब्राम्हण लग्न, -वै* = वैष्य लग्न)
नक्षत्रपति की उच्च और नीच स्थिति, अपने भाव और उच्च भाव से दूरी, जन्मकुंडली की पूरी दिशा ही बदल देती है. अत: इसका निर्धारण बहुत ही योग्यता और कुशलता पूर्वक किया जाना चाहिये.

नक्षत्र




भारतीय वैदिक ज्योतिष में नक्षत्र सिद्धांत को प्रमुखता से स्थान दिया गया है. भविष्यकथन हेतु नक्षत्र पद्धति ज्योतिष की अन्य सभी प्रचलित पद्धतियों में सबसे सटीक व अचूक पद्धति है. चंद्रमा को अपनी कक्षा में भ्रमण करते हुये पृथ्वी की एक परिक्रमा करने में 27.3 अर्थात करीब सवा सत्ताईस दिन लगते हैं. चंद्रमा के 360 अंशों के इस परिभ्रमण पथ को ही 27 समान भागों में बांटा गया है, जिन्हे नक्षत्र कहा जाता है. और इन्हें ही पृथ्वी पर पाये जाने वाले विभिन्न पदार्थों, जीवों, प्राणियों की समानता के आधार पर एवं उनके तारामंडलों के गुण धर्म के आधार पर नामकरण किया गया है. हर एक नक्षत्र एक विशिष्ट तारों के समूह का प्रतिनिधित्व करता है. और हर नक्षत्र का विभाजन 4 चरणों में किया गया है. जातक का जन्म जिस नक्षत्र के जिस चरण में हुआ है, उसी के अनूरूप उसका नाम, व्यक्तित्व, जीवन-चरित्र और भविष्य तय होता है.
क्रमनक्षत्र नामवैदिक नामवेदांग ज्योतिष नामअंग्रेजी नाम
1अश्विनीअश्वयुजजौARIETES
2भरणीअपभरणीण्य:MUSCA
3कृतिकाकृतिकाकृALCYONE
4रोहिणीरोहिणीरोALDE BARAN
5मृगशिरामृगशीर्षमृORIONIS
6आद्राबाहूद्र्र्र्ORIONIS II
7पुनर्वसुपुनर्वसुसूGEMINORUM
8पुष्यतिष्यष्यCANCRI
9आश्लेषाअश्लेषाषाHYDRAE
10मघामघाधाREGULAS
11पूर्वाफाल्गुनीफल्गुनीग:LEONIS
12उत्तराफाल्गुनीउत्तराफाल्गुनीमाDENEBOLA
13हस्तहस्त्यCORVI
14चित्राचित्राचित्त्SPICA
15स्वातिनिष्टयास्वाARCTURUS
16विशाखाविशाखाखेLIBRAE
17अनुराधाअनुराधाधाSCORP II
18ज्येष्ठाज्येष्ठाज्येANTARES
19मूलविचृतौमूSCORPIONIS
20पूर्वाषाढाअषाढाप:SAGITTAR I
21उत्तराषाढाअषाढा उत्तराश्वेSAGITTAR II
22श्रवणश्रोणान:AQUILAE
23धनिष्ठाश्रविष्ठाष्ठाDELPHINI
24शतभिषाशतभिषकषक्AQUAR II
25पूर्वाभाद्रपदप्रोष्ठपदअज:PEGASI/ MARKAB
26उत्तराभाद्रपदपृष्ठपदहि:PEGASI/ ANDROMEDA
27रेवतीरेवतीरेPISCIUM


गुण धर्म, प्रकृति के आधार पर सम्पूर्ण 27 नक्षत्रों का तीन समूहों में विभाजन किया गया है-----
(1)देव प्रकृति:-अश्विनी, म्रृगशीर्ष, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, स्वाति, अनुराधा, श्रवण और रेवती नक्षत्र
(2)मनुष्य प्रकृति:-भरणी, रोहिणी, पूर्वा फ़ाल्गुनी, उत्तरा फ़ाल्गुनी, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और आद्रा नक्षत्र
(3)राक्षस प्रकृति:- कृतिका, आश्लेषा, मघा, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र.

रत्न धारण की विधि


 रत्न को धारण करने से पूर्व उसे पहले गंगाजल अथवा कच्चे दूध से स्नान करायें.उसके बाद जिस रंग का रत्न हो,उसी रंग के कपडे का टुकडा एक पात्र में बिछाकर रत्न को उस पर स्थापित करें. शुद्ध घी का दीपक जलाकर रत्न के अधिष्ठाता ग्रह के मन्त्र का यथाइच्छा संख्या में जाप करने के पश्चात सुबह उगते सूर्य को रत्न दिखायें ताकि रत्न सूर्य किरणों को सही प्रकार से अवशोषित कर ले.तत्पश्चात उस रत्न को धारण करें.

निम्न तालिका से आप सम्बन्धित रत्न का अधिष्ठाता ग्रह,उसका मन्त्र तथा उसे धारण करने के दिन के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
         रत्न  ग्रह         मन्त्र  धारण दिन
माणिक्य, लालडी सूर्य ॐ घृणि सूर्याय नम: रविवार
मोती, मूनस्टोन चन्द्रमा ॐ ऎं स्त्रीं सोमाय नम: सोमवार
मूंगा मंगल ॐ हूं श्रीं भौमाय नम: मंगलवार
पन्ना बुध ॐ ऎं श्रीं बुधाय नम: बुधवार
पुखराज, सुनहला गुरू ॐ ऎं क्लीं बृहस्पतये नम: बृहस्पतिवार
हीरा,जरकन शुक्र ॐ स्त्रीं श्रीं शुक्राय नम: शुक्रवार
नीलम, इन्द्र नीलमणि शनि ॐ शं शनैश्चराय नम: शनिवार
गोमेद, गोमूत्री राहु ॐ स्त्रीं राहुवे नम: बुधवार
लहसुनिया,कैटस आई केतु ॐ ह्रीं केतवे नम: बृहस्पतिवार

लाल किताब


लाल किताब----अरबी, फारसी और उर्दू भाषा के शब्द और शैली से समृद्ध इस अलौकिक किताब को किसने सर्वप्रथम लिखा, यह बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता. दरअसल ये कोई एक पुस्तक न होकर अनुभूत श्रुति है. जिसे कालान्तर में ज्योतिष मनीषियों नें विधिवत क्रमबद्ध से अपने-अपने अनुभवों के आधार पर ज्यों का त्यों लिखने का प्रयास किया.

'लाल-किताब' मूलत: प्राचीन भारतीय वेदकालीन तन्त्र ज्योतिष के महान ग्रन्थ 'अरूण-संहिता' और यूनान के तिलस्मी, अरब के ज्योतिष फकीरों और भारतवर्ष के तन्त्रमार्गी ज्योतिर्वेदों द्वारा ग्रहों के अनुकूलन हेतु बताये गए और अपनाये गए ज्योतिष सिद्धान्तों का लेखा-जोखा है. हम जानते हैं, कि जिस प्रकार आध्यात्मिक उपलब्धियों और सिद्धियों के लिए सात्विक साधना को अपनाया जाए तो उनमें सफलता हेतु अत्यधिक विलम्ब का सामना करना पडता है. कईं बार तो सफलता के लिए जन्म पर जन्म लेना पडता है. जब कि तन्त्रमार्ग अपनाने पर ईष्ट सिद्धियाँ, भौतिक सिद्धियाँ ओर यहाँ तक कि अष्ट-सिद्धियाँ और नव-निधियाँ साधक को सहज और कम समय में प्राप्त हो जाती हैं. उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र में भी अशुभ और विपरीत फल देने वाले अनिष्ट ग्रहों को यदि सात्विक साधना से अनुकूलित करते हैं तो धन, समय और अत्यधिक श्रम लगता है. इसलिए तन्त्रमार्गी ज्योतिर्विदों, सन्तों, फ़कीरों द्वारा जन समाज को इन ग्रहों से सहज लाभ उपलब्ध कराने की दृष्टि से अपने-अपने ईष्टों की कृपा से सैकडों प्रकार के उपायों का प्रतिपादन किया. इन्ही उपायों का विधिवत लिखित रूप 'लाल-किताब' है.

ज्योतिष विद्या को जानने,समझने, अपनाने वाले या इस पर विश्वास रखने वाले रूचिवान लोगों में से आज शायद ही कोई ऎसा व्यक्ति हो, जो ज्योतिष विद्या की 'लाल-किताब' के बारे में सकारात्मक या नकारात्मक अर्थात कुछ न कुछ नहीं जानता होगा. वर्तमान में तो प्राय: आम व्यक्ति भी लाल-किताब को जानने, समझने के साथ ही उसके उपायों को अपनाने लगे हैं. खैर, अपनाना भी चाहिए, क्योंकि वर्तमान में वैज्ञानिक अनुसन्धान और कम्पयूटर के इस भागदौड भरे युग में जप-तप ईश्वर दर्शन, लम्बे क्लिष्ट अनुष्ठान करने के बाद शन्ति के अवसर भला कौन प्राप्त करना चाहेगा ? जब चारों ओर मन, शरीर और आत्मा की प्रसन्नता के लिए सैकडों भौतिक सुख-संसाधनों की खोज हो चुकी हो, ऎसे समय में धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टि से ग्रह शान्ति करना बडा महंगा और उबाऊ लगता है. लाल-किताब हमें इसी से बचाती है. कम व्यय:, कम समय और कम परेशानियों में अधिकाधिक लाभ प्राप्त कराती है.

अब मुख्य प्रश्न यह उठता है, कि क्या ऎसा सम्भव है कि कम श्रम में हमें अधिक लाभ मिले ? जी हाँ, ऎसा सम्भव है. क्योंकि हम अपने दैनिक जीवन में नित्य देखते हैं कि लभगभ सौ-डेढ रूपये प्रतिदिन कमाने वाला एक मजदूर दिन भर कठोर श्रम करता है, पसीना बहाता है, रूखी-सूखी रोटी खाता है, फिर भी तमाम जीवन फटेहाल स्थिति में गुजार देता है. अपमान, अभाव और जिल्लत की जिन्दगी ही उसके भाग्य में होती है. उसके विपरीत 5-6 हजार महीना कमाने वाला क्लर्क दिनभर पंखें, कूलर, ए.सी. की ठंडक में कुर्सी पर बैठकर काम करता है. सैकडों लोग उसके चक्कर लगाते हैं, अर्थात उसका सम्मान करते हैं. वो आदमी साफ-स्वच्छ  कपडे पहनता है, अच्छे मकान में अच्छे प्रतिष्ठित लोगों के बीच रहता है. उसका परिवार सम्मान से जीता है.

बताईये, समान मात्रा में धन कमाने वालों के इतने असमान जीवन स्तर क्यों ? दरअसल यहीं से लाल-किताब और उसमें लिखे उपायों की आवश्यकता महसूस होती है, क्यों कि मजदूर की जन्मकुंडली देखने पर प्रतीत होता है कि उसमें दसवें भाग में पापी ग्रह शनि पाप राशि में स्थित है, जो उसे संघर्ष युक्त जीवन जीने हेतु विवश किए हुए है. इसके विपरीत क्लर्क की जन्मकुंडली में दसवें स्थान पर शुभ गुरू शुभ राशि में है, जो उसे सभी प्रकार से सुख-सुविधा और जीवन की लाभदायक स्थितियाँ प्रदान कर रहा है. अब यदि दसवें स्थान से शनि के प्रभाव को हटाकर वहाँ गुरू का प्रभाव उत्पन्न कर दिया जाए तो वो मजदूर भी क्लर्क के समान अच्छा जीवन यापन कर सकता है. इसी प्रकार हमारे जीवन से अशुभ घटनाओं, हानिकारक फलों को कम कर शुभ घटनाओं और लाभदायक परिस्थितियों का निर्माण कराने में लाल-किताब एक कल्पवृक्ष का काम करता है.

वैदिक ज्योतिष


ज्योतिष का नाम आते ही किसी भी इन्सान का मन अपने भविष्य के रहस्यों की जानकारी प्राप्त कर लेने के लिए आतुर हो उठता है. व्यक्ति किसी ज्योतिषी के पास यही आशा लेकर जाता है कि उसे वह जो कुछ भी बतलाएगा, वह अक्षरश: उसी तरह से घटित होगा. लेकिन यह सबकुछ सिर्फ उस ज्योतिषी पर निर्भर करता है कि वह उसकी जन्मकुंडली का अध्ययन कर अपनी समझ, अपने ज्ञान के अनुसार उसके भविष्य के बारे में फलकथन करता है.

दरअसल ज्योतिष एक ऎसी विद्या है जिसकी सीमाएं बहुत विस्तृत हैं. प्राचीनकाल के ऋषि-मुनियों, शास्त्रकारों नें प्राणीमात्र से संबन्धित प्रत्येक पहलू और तथ्य का अध्ययन करने के आधार एवं माध्यम खोजकर दुनिअय के सामने रख दिए हैं, इतने पर भी सबका अध्ययन-मनन करना और व्यवहार में स्वयं की समझ-बूझ, तर्कशक्ति एवं इससे भी बढकर उसके आत्मज्ञान के बल पर सटीक परिणाम तक पहुँचना ज्योतिषी की अपनी पात्रता पर निर्भर करता है.

ज्योतिष की उपयोगिता प्राणी के गर्भाधान के समय से प्रारम्भ हो जाती है. जब प्राणी गर्भमुक्त होता है अर्थात जन्म ले लेता है, वही क्षण उसके सम्पूर्ण जीवन के फलित का आधार बनता है. गर्भ में आने से जन्म ले लेने तक की अवधि तक वह जो समय व्यतीत करता है, उसके पीछे प्रकृति की सप्रयोजन क्रिया रहती है.

स्त्री-पुरूष के मिलन से गर्भाधान की जो स्थिति बनती है, उस समय आकाशमंडल में नवग्रहों की स्थिति पर व्यक्ति का शरीर, चरित्र, परिवार एवं उसके जीवन की सम्पूर्ण स्थितियाँ निर्भर करती हैं. स्त्री के रजस्वला होने में चन्द्र-मंगल की स्थिति मूल कारण रहा करती है और पुरूश को सन्तानोत्पन करने की सक्षम स्थिति में लाना चन्द्रमा और शुक्र पर निर्भर करता है. यूँ सन्तानोत्पत्ति में अन्य ग्रह भी सहायक हैं लेकिन मुख्य भूमिका शुक्र और मंगल की ही रहती है.

संसार में जो भी घटनायें घटित होती हैं, उनके अनेक कारण बतालये जाते हैं जैसे इन्सान का कर्म या कहें प्रारब्ध, ईश्वर की इच्छा अथवा प्रकृति का नियमित प्रवाह. इन घटनाओं का इन नवग्रहों से क्या सम्बन्ध है? ऊपर कहे गये बलवान कारणों के रहते संसार के कार्यों में ग्रहस्थिति कय परिवर्तन ला सकती है? इन सवालों का जवाब सबके एकत्व का विचार कर लेने पर मिलेगा. ईश्वर की इच्छा ही प्रकृति अक प्रवाह है. प्रकृति के तीन गुणों राजस-सात्विक-तामस के प्रवाह के अनुसार ही ग्रहों की निश्चित गति और मनुष्यों का प्रारब्ध है और प्रारब्ध के अनुसार ही फल मिलता है. शरीर की उत्पत्ति भी प्रारब्ध के अनुसार ही होती है. जैसा जिसका कर्म होता है वैसी उसकी देह होती है. जिस देह में प्रारब्ध के अनुसार जैसी कर्म वासनायें होती हैं, उसके जीवन में जिस प्रकार की घटनायें घटने वाली होती हैं----उसी के अनुरूप उस देह की उत्पत्ति के समय वैसी ही ग्रहस्थिति आकाशमंडल में होती है. ग्रहों की स्थिति समान होने पर भी देश-काल और देह-भेद के कारण उनका भिन्न-भिन्न प्रभाव पडता है. इसलिए वैदिक ज्योतिष में ग्रहों को किसी नूतन फल का विधान करने वाला न बतलाकर व्यक्ति के अपने प्रारब्ध के अनुसार घटनेवाली घटनाओं का सूचक/सन्देशवाहक कहा गया है------"ग्रहा: वै कर्म सूचका" 

हमारे विषय में

वर्तमान युग तीव्रता का युग है. प्रत्येक व्यक्ति कम समय में बहुत कुछ जानने एवं पाने को सदैव उत्सुक रहता है. वह तो जीवन की एक सर्वपक्षीय झलक, वर्ष, माह, दिन में घटित होने वाली घटनाओं, समस्यायों के समाधान सरल; साधारण तौर पर बोली जाने वाली भाषा में जानने को तत्पर रहता है. यह सब कुछ वह एक ही स्थान से प्राप्त करने की अभिलाषा करता है. अत: प्रत्येक व्यक्ति की इस अभिलाषा एवं आवश्यकता को मुख्य रखकर ही इस वैबसाईट का आरम्भ किया गया है. जहाँ यह वैबसाईट सर्व साधारण व्यक्ति की आवश्यकता, उसके जीवन की विभिन्न समस्यायों का उचित समाधान प्रस्तुत करेगी, वहीं माननीय ज्योतिषियों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी.

यह वैबसाईट जनसामान्य को अर्पित करते हुए हमें अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है. इस के माध्यम से आप अपने जीवन का सम्पूर्ण फल, अद्भुत ज्योतिष का ज्ञान, चरित्र, व्यक्तित्व, विद्या, विवाह, प्रेम-सम्बन्ध, सन्तान सुख, रोजगार, आर्थिक स्थिति; मित्र-शत्रु; आयु; रोग; यात्रा; विदेश यात्रा, महत्वपूर्ण वर्ष, माह, शुभ दिन, शुभ रत्न, अनुभव सिद्ध ग्रह उपाय, अलौकिक चमत्कारिक टोटके, तथा आयु के प्रत्येक वर्ष, प्रत्येक माह का फल गोचर तथा अद्वितीय नक्षत्र वर्षफल पद्धति द्वारा सविस्तार जान सकेंगें. जीवन के अदृश्य भविष्य के अन्धेरे में उलझे टेढे-मेढे रास्तों को झाँकने एवं योजना बना कर उन रास्तों को सीधे-सपाट कर सकेंगें. भविष्य की अज्ञात परतें क्षण में आपके सम्मुख खुलती चली जाएंगीं. निराशा, आशा में बदल जायेगी. उलझने, अडचने, परेशानियों, समस्यायों, दु:खों, कष्टों तथा चिन्ताओं की काली रात्रि विलीन हो जायेगी और आप जीवन में पुन: शुभ दूधिया शीतल चाँदनी का अनुभव कर पायेंगें. नव-प्रभात की सुनहरी किरणें आपका मार्ग दर्शन करेंगीं.  भारतीय ज्योतिष के दिव्य आलोक में लोक-ज्योतिष के हमारे कालदृष्टा विश्वप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यो का सिर्फ एक परामर्श आपके जीवन का सम्पूर्ण दृश्य बदल देगा. एक ऎसा जीवन जिसमें होगी केवल! सुखानुभूति, हर्ष एवं सम्पन्नता !!!

हानि और दुख दायक स्वप्न (भाग २)

स्वप्न में अपने दांत और बाल गिरते हुये देखने से धन हानि अथवा शारीरिक तकलीफ़ का संकेत है.

अपने ऊपर सींग वाले जानवर, जंगली मनुष्यों बालको द्वारा हमला होता हुआ देखना राजदंड और सरकारी भय का संकेत है.

गिरता हुआ कटा पेड, भूसा, छुरा, लाल अंगारा, शिला वॄष्टि, राख, ज्वाला मुखी की राख की वर्षा देखने से दुख और हानि प्राप्त होते हैं.

गिरते पर्वत, शिलाये, गिरते ग्रह नक्षत्र, गिरते हुये तारे, धूमकेतु इत्यादि देखना दुख प्राप्ति का सूचक है.

रथ, हाथी, मकान, पेड, पर्वत, घोडे को आकाश से जमीन पर गिरता देखना संकट में फ़ंसने का संकेत है.

लाल फ़ूलों से युक्त, लाल वस्त्राभूषण युक्त स्त्री का आलिंगन करते देखने वाला शीघ्र ही रोगी हो जाता है.

गिरते हुये नाखून और केश, बुझी हुई भस्मयुक्त चिता को देखना मृत्यु का पूर्व संकेत है.

श्मसान, लकडी, लोहा, सूखा घासफ़ूस, काली स्याही और किंचित काले रंग के घोडे को सपने में देखने से निश्चित तौर पर चिंता एवम दुख की प्राप्त होती है.

लाल फ़ूलो की डरावनी माला, ललाट की हड्डी, मूंग, मसूर या उडद देखने से शरीर में व्रण (घाव) अथवा फ़ोडा होते हैं.

सपने में गिरगिट कौवा, सेना दल, नीलगाय, वानर, भालू और शरीर के मल को देखना सिर्फ़ व्याधि जन्य होता है.

ब्राह्मण, ब्राह्मणी, माता, पिता, गुरू, छोटी कन्या, बालक-पुत्र अगर गुस्से से विलाप करते दिखें तो दुख प्राप्त होता है.

बाजा, नाच गान, गवैया, लाल वस्त्र एवम बजाया जाता मॄदंग देखने से निश्चित दुख की प्राप्ति होती है.

मलेच्छ और पाश हाथ में लिये हुये भयंकर यमदूत को देखना मॄत्यु का निश्चित संकेत है.

काले फ़ूल, काले फ़ूलों की माला, अस्त्र शश्त्र धारी सेना, विकृत आकार वाली दुष्टा स्त्री को देखना निश्चित मृत्यु को गले लगने का संकेत है. इसी तरह प्राण रहित शव (मुर्दे) को देखना मॄत्यु सूचक होता है. जो मत्स्य आदि को धारण करता है उसके भाई की मॄत्यु का संकेत है.

घायल, बिना सर का धड, मुंडित सर वाले एवम तीव्रता पूर्वक नाचते हुये बेडोल प्राणी को देखना मनुष्य की मृत्यु सूचक है. मरा हुआ पुरूष या मरी हुई काले रंग की भयानक मलेच्छ स्त्री अगर स्वप्न में आलिंगन करे तो निश्चित मॄत्यु का सूचक है.

(पिछला भाग १ यहां पढिये)

[अपने सपनों को विश्लेषित करते समय यह जरूर ध्यान रखें कि सपनों का क्रम, घटनाएं सदैव उलझी हुई और सब कुछ गड्ड मड्ड रहता है. कुछ याद रह जाता है, कुछ भूल जाते हैं. अत: सपनों में देखी गई घटनाओं को शांत चित होकर क्रमवार व्यवस्थित रखकर उनका अध्ययन करने से उनके बारे में आप सटीकता से जान पायेंगे]

हानि और दुख दायक स्वप्न (भाग १)

शुभ स्वप्न कौन से होते है? (भाग १) और (भाग २) में हमने आपको कुछ उन स्वप्नों के बारे में बताया था जिन्हे देखे जाने के उपरांत सुखदायक परिणाम प्राप्त होते हैं. अब हम आपको ऐसे सपनों को देखने का फ़ल बता रहे हैं जिन्हे देखे जाने के बाद दुख और हानि प्राप्ति होती है.

जो व्यक्ति सपने में अपने आपको अति आनंद में अट्टहास करते देखता है, शादी में विवाहोत्सव इत्यादि के नाच गान देखता है, उसे जल्दी ही विपरीत स्थितियों का सामना करना पडेगा.

स्वप्न में दांत तोडे जाते हुये और उन्हें गिरते हुये देखना धन हानि और शारीरिक कष्ट का सूचक है.

तेल से स्नान करके, गधे, उंट या भैंसे पर बैठे हुये देखना विपत्ति सूचक और अगर इन पर सवार अपने आपको दक्षिण दिशा में जाता देखे तो भयानक मरण अथवा मरण तुल्य शारीरिक कष्ट का सूचक है.

पतित विधवा स्त्री, नग्न और काली स्त्री, जटा या ताड के फ़ल को देखना शोक प्राप्ति का सूचक है.

क्रोधित ब्राह्मण और उसकी पत्नि को देखना, संकट आने और घर से लक्ष्मी के विदा होने का सूचक है.

जंगली फ़ूल, लाल फ़ूलों से लदा पलाश, लाल फ़ूल, कपास, और सफ़ेद वस्त्र को देखना दुख दायक होता है.

काले वस्त्र पहने, काले रंग की नाचती गाती हंसती स्त्री को देखना मॄत्यु सूचक है.

स्वप्न में देवता नाचते, गाते ताल ठोकते और दौडते भागते हुये दिखाई देते हैं, यह भी मॄत्यु सूचक स्वप्न होता है.

काले वस्त्राभूषण और काले फ़ूलों की माला धारण की हुई स्त्री का आलिंगन करते देखना का, मृत्यु को आलिंगन करने जैसा फ़ल होता है, अर्थात वह मॄत्यु को प्राप्त होता है.

स्वप्न में हिरण का मरा हुआ बच्चा पाना, हड्डी की माला और मनुष्य की खोपडी पाता है वह विपत्तियों में फ़ंसने का संकेत है.

जिस रथ में उंट या गधे जुते हुये हों, उस रथ पर अपने को सवार देखकर जगने वाला मनुष्य जल्द ही मॄत्यु का शिकार बन जाता है.

जिसके शरीर पर कौवे, शत्रुओं का दल, मुर्गे या रींछ टुटे पडते हों वह निश्चित मॄत्यु का शिकार हो जाता है.

जिस पर भैंसे, ऊंट, सूअर और गधे क्रोधित होकर हमला करते हों वह मनुष्य के रोगी बन जाने का संकेत है.

उंचाई से गिरना अवनति सूचक है, पर उंचाई से अगारयुक्त कुंडों में गिरना, यमदूतों द्वारा पाश में बांधा जाना मॄत्यु सूचक है.

अगर मस्तक से कोई बलपुर्वक दुष्ट मनुष्य टोपी, पगडी उतार ले तो उसके पिता, गुरू का नाश हो जाने का संकेत है. इसी तरह से अगर कोई मस्तक से मुकुट उतार ले तो उसके राज्य की सरकार या उसका मुखिया संकट में फ़ंस कर सत्ताच्युत होने का संकेत है.

अपने घर से भयभीत होकर गाय को बछडे सहित जाती हुई दिखे तो घर से लक्ष्मी चले जाने, और हानि होने का संकेत समझना चाहिये.

अगर स्वप्न में ज्योतिषी, ब्राह्मण अथवा गुरू शाप देता हुआ दिख जाये तो यह विपत्ति भोगने का निश्चित संकेत है.

(अगला भाग २ यहां पढिये)

[अपने सपनों को विश्लेषित करते समय यह जरूर ध्यान रखें कि सपनों का क्रम, घटनाएं सदैव उलझी हुई और सब कुछ गड्ड मड्ड रहता है. कुछ याद रह जाता है, कुछ भूल जाते हैं. अत: सपनों में देखी गई घटनाओं को शांत चित होकर क्रमवार व्यवस्थित रखकर उनका अध्ययन करने से उनके बारे में आप सटीकता से जान पायेंगे]

शुभ स्वप्न ? (भाग २)

1. स्वप्न में हाथी, स्वर्ण, राजा, बैल, गाय, दिया, अनाज, फ़ल, फ़ूल, कन्या, छत्र, पताका, रथ, भरे हुये घट, फ़ूल, पान, मंदिर, ब्राह्मण अग्नि, श्वेत अनाज, नर्तकी, गाय का दिखाई देना यश, मान सम्मान और धन दायक होता है.

2. काली दर्शन, स्फ़टिक, इंध्रधनुष, और वह्र प्राप्त होते हुये देखना मान सम्मान प्राप्ति का सूचक होता है.

3. स्वप्न में दैदिप्यमान नारी अगर अपने आपको, आपका स्वामी स्वीकार करती है, और आप उसके बाद आप तत्काल जाग उठते हैं तो यह निश्चय ही अतुलनीय धन प्राप्ति का सूचक है.

4. मछली मांस, मोती, शंख, चंदन, आंवला, हीरा, मदिरा, स्वर्ण, रक्त, मल (विष्ठा) फ़लती फ़ूलती लता और आम को देखना शुभ तथा धन दायक होता है.

5. स्वपन में जलती हुई अग्नि का दिखाई देना धन और बुद्धि प्राप्ति का स्पष्ट संकेत होता है.

6. ब्राह्मणों का दर्शन और उनके द्वारा आशीर्वाद प्राप्त करना लेखन में सफ़लता और सुख सौभाग्य का परिचायक होता है.

7. स्वप्न में ब्राह्मण द्वारा दी गई वस्तु प्राप्त करते हुये देखना, ब्राह्मण द्वारा दिया गया आशीर्वाद, उसके द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त करते हुये अपने आपको देखना, धन और आयुष्य की वॄद्धि कारक होता है. अगर स्वप्न में ब्राह्मण आपसे संतुष्ट होकर अपनी कन्या देता दिखे तो यह स्वप्न निश्चय ही एक विशाल औद्योगिक साम्राज्य की स्थापना का स्पष्ट संकेत है.

8. ब्राह्मण द्वारा मंत्र दिया जाना देखने वाला विद्वान होता है और अगर कोई देव प्रतिमा वह ब्राह्मण देता दिखे तो यह मंत्रोपासना की सिद्धि एवं इष्टकृपा का सूचक है.

9. सफ़ेद वस्त्राभूषण और श्वेत मालाओं से अलंकृत सुंदरियां द्वारा आलिंगन प्राप्त करते देखना सुख सौभाग्य और धन दायक होता है.

10. पीले वस्त्राभूषण और पीले फ़ूलों की मालाओं से युक्त सुंदरियों द्वारा आलिंगन प्राप्त करते हुये देखने पर कल्याण की प्राप्ति होती है.

11. स्वप्न में उच्च कुलीन, प्रसन्न चित स्त्री घर आते हुये दिखे, उसे अवश्य ही अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होती है. ब्राह्मण/ब्राह्मणी द्वारा मुस्काराते हुये अगर कोई फ़ल देवें तो अवश्य ही पुत्र प्राप्ति का संकेत है. स्वप्न में ब्राह्मण द्वारा दिया आशीर्वाद, उसके द्वारा दी गई कोई भी वस्तु प्राप्त की जाती हुई देखना अथाह सुख सौभाग्य, धन संपति, यश मान, विजय, रत्न और समस्त इच्छाओं के पूरा होने का संकेत है. यह अति सर्व श्रेष्ठ कोटि का स्वप्न होता है.

12. स्वप्न में सपत्निक ब्राह्मण को अपने घर आते हुये देखना समस्त सिद्धियों का आगमन समझना चाहिये.

13. किसी वीरांगना का गृह आगमन देखना लक्ष्मी आगमन का संकेत है.

14. सात आठ वर्षीय, सुंदर अलंकृत कुंआरी कन्या संतुष्ट, प्रसन्न होकर कोई पुस्तक दे तो यह विख्यात कवि या लेखक होने का संकेत है, अगर वो कन्या स्नेहमयी माता की तरह पढाती हुई दिखे या पिता की तरह यत्नपूर्वक पढाती हुई दिखे, या किसी प्रकार का कोई ज्ञान दे तो हर हाल में विद्वान होने, अपने शोध और खोजों में सफ़ल होने, पी.एच.डी पूर्ण होने का स्पष्ट संकेत समझना चाहिये.

15. इसी तरह अगर रास्ते में कोई पडी हुई पुस्तक प्राप्त हो तो भी यह विद्वान और लेखन में सफ़लता को द्योतक है.

(भाग १)

[अपने सपनों को विश्लेषित करते समय यह जरूर ध्यान रखें कि सपनों का क्रम, घटनाएं सदैव उलझी हुई और सब कुछ गड्ड मड्ड रहता है. कुछ याद रह जाता है, कुछ भूल जाते हैं. अत: सपनों में देखी गई घटनाओं को शांत चित होकर क्रमवार व्यवस्थित रखकर उनका अध्ययन करने से उनके बारे में आप सटीकता से जान पायेंगे]

शुभ स्वप्न (भाग १)

नींद में जिन भी स्वपनों को हम देखते हैं, वो विभिन्न श्रेणियों के होते हैं तथापि एक बात तय है कि उनमें कुछ स्वपन ऎसे होते हैं जो कि शुभ होकर हमें एक अच्छे सुखद भविष्य का संकेत दे जाते हैं. वैसे ही कुछ नकारात्मक संकेत देने वाले स्वपन भी होते हैं.
इस आलेख के द्वारा हम आपको कुछ ऎसे स्वपनों के बारे में जानकारी दे रहे हैं, जिन्हें हम सकारात्मक या शुभ श्रेणी का मान सकते हैं. इन दॄष्यों को स्वप्न में देखा जाना निश्चित ही आने वाले समय में सुख सौभाग्य का सूचक है.
1. स्वप्न में सूर्य अथवा चंद्रमा का दिखाई देना यह संकेत करता है कि अब रोग से मुक्ति का समय आ गया है.

2. फ़लों से लदा वॄक्ष, सर्प द्वारा काटा जाना, छत्र की प्राप्ति, पादुका की प्राप्ति धन मिलने का संकेत है.

3. जलक्रीडा में पानी पर अपने आपको तैरते हुये देखना उच्च पद प्राप्ति प्रोमोशन का संकेत है.

4. अगर आप सपने में अपने आपको हाथी द्वारा सूंड से उठाकर उसके मस्तक पर बिठाया जाना देखते हैं तो यह एक बहुत ही सौभाग्यशाली स्वप्न है. शीघ्र ही आपको बहुत बडा पद और संपति प्राप्त होगी.

5. गाय, घोडा, महल, हाथी, पर्वत पहाड, पेड पर चढना, रोना और भोज्य पदार्थ खाते हुये देखना धन दायक होते हैं. हाथ में वाद्य यंत्र सितार/वीणा लेकर गाते हुये देखना खेत खलिहान की प्राप्ति का द्योतक है.

6. स्वप्न में अपने आपको नदी किनारे कमल पत्र पर दही, खीर, दूध शहद खाते हुये देखना भविष्य में एक बडे औद्योगिक साम्राज्य का मालिक होने का संकेत है.

7. मूर्ति, शिवलिंग के दर्शन से विजय और धन मिलने की सूचना प्राप्त होती है.

8. सपने में सींगधारी, बडे दांत वाले, सूअरों और बंदरो से पीडा प्राप्त हो तो वह व्यक्ति निश्चित ही प्रचुर धनराशि और अधिकार प्राप्त करता है.

9. स्वपन में जोंक, बिच्छु या सांप दिखाई दें तो धन, संतान और विजय, मान सम्मान इत्यादि की प्राप्ति होती है.

10. घोडी अथवा मुर्गी का दिखाई देना निकट भविष्य में विवाह होने का संकेत है. अपने आपको हथकडी बेडी में देखना सम्मान और पुत्र प्राप्ति का संकेत है.

11. सपने में शरीर में तलवार छुरे से घाव हो जाये, उसमें कीडे पड जायें, शरीर को मल मुत्र, खून से सना हुआ देखना भविष्य में रुपया धन आदि प्राप्ति का सूचक है.

12. अपने आपको निम्न स्तर के स्त्री/पुरूषों के साथ संभोग साहचार्य मे देखना शीघ्र विवाह का सूचक है.

13. स्वप्न में मूत्र में भीगते हुये देखना, वीर्यपात करते देखना, नर्क में प्रवेश करना, शहर में प्रवेश करते हुये देखना या अमृत चखते हुये देखने वाले व्यक्ति को शीघ्र ही कोई शुभ समाचार प्राप्त होता है एवम धन लाभ भी मिलता है.

14. यदि स्वपन में अचानक गाय मिल जाये तो सुंदर स्त्री की प्राप्ति होती है. अगर कोई भरा हुआ कलश देता दिखे उसे धन और पुत्र की प्राप्ति होती है.

15. स्वपन में तालाब, समुद्र, नदी, सफ़ेद सांप, सफ़ेद धवल पर्वत का दिखाई देना धन दायक होता है.

16. स्वपन में अपने आपको मरा हुआ देखने वाला अधिक आयुष्यमान होता है, अपने को रोगी देखे तो निरोगी होता है, अगर स्वयं को प्रसन्न होता हुआ देखे तो अवश्य ही दुखी होता है..

17. स्वप्न में रूई, हड्डी और भस्म के अलावा अन्य सभी सफ़ेद वस्तुयें देखना शुभ फ़लकारी हैं.

18. काली गाय, हाथी, ब्राह्मण, देवता एवम घोडों को छोडकर अन्य सभी काली वस्तुये देखना अशुभ फ़लदायी हैं.

(भाग २)

[अपने सपनों को विश्लेषित करते समय यह जरूर ध्यान रखें कि सपनों का क्रम, घटनाएं सदैव उलझी हुई और सब कुछ गड्ड मड्ड रहता है. कुछ याद रह जाता है, कुछ भूल जाते हैं. अत: सपनों में देखी गई घटनाओं को शांत चित होकर क्रमवार व्यवस्थित रखकर उनका अध्ययन करने से उनके बारे में आप सटीकता से जान पायेंगे]

मंत्रों की महता


"मननात त्रायते यस्मात तस्मान्मन्त्र: प्रकीर्तित:"
भारत के किसी प्राचीन ऋषि नें "मन्त्र" शब्द की इस व्युत्पत्ति द्वारा मन्त्र की महत्ता पूर्ण रूप से व्यक्त कर दी है, साथ ही मन्त्र-योग की साधना-प्रक्रिया का बीज भी हमें प्रदान कर दिया है. मन्त्र-साधना में 'मूल' तथ्य है-----'मनन'----अर्थात मन्त्र की भावना और अक्षरों के साथ तादात्मय. वास्तव में भावना और अक्षर तादात्मय ही मन्त्र की सार्थकता है और यही उसकी विराट शक्ति है, जिसके बल पर मन्त्र असाध्य कार्य को भी साध्य कर देता है, अप्राप्य की भी प्राप्ति करा देता है और इष्टसिद्धि में सहायक होता है.

भारतीय मनीषियों नें नाना रूपों में साधना करते हुए नाना मन्त्रों के रूप में मानवीय शक्ति के असीम स्त्रोतों के साथ अपने को सम्बद्ध कर लिया है. यही कारण है कि यहाँ विभिन्न सम्प्रदायों के विभिन्न मन्त्र हैं और प्रत्येक मन्त्र के द्वारा किसी देव विशेष की दिव्यात्मा के साथ सम्बन्ध जोडकर उसके द्वारा अभीष्ट कार्यों को सिद्ध किया जाता है. जैसे वैदिक परम्परा में गायत्री मन्त्र है. महर्षि विश्वामित्र नें इसकी ऎसी अक्षर-योजना की है उसके द्वारा साधक की आत्मा सूर्य-तेज के साथ तदात्म्य स्थापित करके अपनी अभीष्ट पूर्ति करती है.

कहते हैं कि महर्षि वाल्मीकि को नारदजी नें 'राम' मन्त्र प्रदान किया था, परन्तु बाल्मीकि 'राम' के स्थान पर 'मरा-मरा' जपते हुए ही पूर्ण-काम सर्वसमर्थ महर्षि बन गए. क्योंकि 'राम' एक मन्त्र है और मन्त्र का कोई अर्थ हो ही यह आवश्यक नहीं, क्योंकि मन्त्र ध्वन्यात्मक होता है और प्रत्येक ध्वनि में और उस ध्वनि के प्रकम्पनों में वातावरण, भावना और विचारों को बदलने की अदभुत क्षमता होती है. यही कारण है कि भारतीय मनीषी शब्द को 'ब्रह्म' कहते आए हैं------ब्रह्म विराट है------ध्वनि की विराटता विज्ञान-सम्मत है, क्योंकि ध्वनि सैकिंडों में लाखों मीलों का फासला तय करते हुए ब्राह्मण्ड को व्याप्त कर लेती है.

आज के इस आधुनिक जड विज्ञान में ध्वनि को विद्युत का एक रूप माना गया है, परन्तु भारतीय तत्ववेत्ता विद्युत को भी ध्वनि का ही एकरूप मानते हैं. मूल विद्युत नहीं बल्कि ध्वनि है. मन्त्रोच्चारण करते समय व्यक्ति के रोम-रोम में ध्वनि की विद्युत रूप धारा चारों ओर फैलने लगती है. विशेष साधक जो साधना के रहस्य-सिन्धु की गहराईयों तक पहुँच जाते हैं, वे विभिन्न आसनों एवं विभिन्न मुद्राओं द्वारा ध्वनि अर्थात मन्त्र जाप करते समय शरीर में दौडने वाली उस विद्युत धारा को इस प्रकार नियन्त्रित कर लेते हैं कि जैसे गहन अन्धकार में सहसा बिजली के चमकने से सबकुछ प्रत्यक्ष हो जाता है, वैसे ही उनके सामने सार्वभौम सत्य अपने समग्र रूप में एक साथ प्रकट हो जाता है. वैदिक परम्परा में इसी को 'पूर्णमद: पूर्णमिदं' आदि रूपों में पूर्ण ज्ञान कहा जाता है. इस पूर्ण ज्ञान के मूल में जो ध्वन्यात्मक विद्युत-प्रवाह है, उसका मूल स्त्रोत मन्त्र ही है. मन्त्र उपासना द्वारा ही आप उस वास्तविक एवं पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं अन्यथा नहीं.

जिस प्रकार रेडियो, टेलिवीजन में तारों को विशिष्ट विधि से आपस में संयुक्त कर देने पर उनमे प्रसारण की क्षमता जागृत हो जाती है, ठीक वैसे ही हमारे इस मानवीय शरीर में भी प्रकृति नें नसों-नाडियों और शिराओं आदि को इस प्रकार से परस्पर आपस में सम्बद्ध किया हुआ है जिससे उनमें ध्वनि नियन्त्रण, ध्वनि-प्रसारण और ध्वनि-उत्पादन आदि की सर्व क्षमताएं मौजूद है. जिस प्रकार औषधियों में रोगनाशक शक्ति होती है, परन्तु वह शक्ति विभिन्न उपायों, विधियों और मात्रा से ही काम करती है, इसी प्रकार प्रत्येक मन्त्र की विशिष्ट अक्षर-योजना से शारीरिक विद्युत-धारा जो प्रत्येक इन्सान के मस्तक के आसपास रहती है, शरीर के विभिन्न अंगों से प्रवाहित होने लगती है. फिर उसके द्वारा स्वेच्छा से अपने कार्य सिद्ध किए जा सकते हैं.

मन्त्र-योग में 'ध्वनि' ही प्रमुख है, अत: मन्त्रों में अर्थ पर ध्यान न देकर ध्वनि-योजना की विशेष विधि ही अपनाई जाती है. यही कारण है कि साधारण से दिखने वाले मन्त्र जिनका अपने आप में कोई विशेष अर्थ नहीं होता, जो बिल्कुल निरर्थक प्रतीत होते हैं, उनमें इतनी विराट् शक्ति समाहित रहती है कि जिसे सिर्फ उस मन्त्र का उपासक ही जान सकता है. महामन्त्र ' ॐ ' का कोई शाब्दिक अर्थ नहीं, विभिन्न बीज मन्त्रों जैसे ह्रां, ह्रीं, ह्रूं, ह्रौं, ह्र:, क्रीं, ऎं, ग्लौं इत्यादि भी कोई अर्थ नहीं रखते------लेकिन मन्त्र में ये अक्षर सिर्फ ध्वनि-प्रकम्पन के लिए प्रयुक्त होते हैं.

अनिष्ट ग्रहों के कारण और निवारण


मानव जीवन पल-प्रतिपल ग्रहों से संचालित होता है और समस्त ग्रह आकाशमंडल में निरन्तर अपनी धुरी पर घूमते हुए निर्दिष्ट समय में सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं. चन्द्र से लेकर शनि पर्यन्त किसी भी ग्रह की अपनी स्वयं की किरणें या रश्मियाँ न होकर वो आत्मकारक सूर्य से प्रकाश ग्रहण करता है और फिर उसे पृथ्वी सहित आकाशमंडल में चारों ओर न्यूनाधिक रूप में फैला देता है. इस समूचे चराचर जगत में ग्रहों की रश्मियों का अभाव या अधिकता ही दुर्योग का कारण बनता है. इसलिए इन समस्त ग्रहों का उचित अनुपात ही मानव जीवन की श्रेष्ठता के लिए आवश्यक है. सूर्यादि इन नवग्रहों में से किसी एक ग्रह की दुर्बलता भी मानव जीवन की अपूर्णता ही कही जाएगी.
ग्रहों के इस उतार-चढाव को सामान्य रूप में लाने के लिए ग्रहों के निवारण एवं देवोपासना का स्वरूप यहाँ आप लोगों के कल्याण हेतु यहाँ प्रस्तुत है :--

सूर्य:- न केवल ज्योतिष अपितु सम्पूर्ण ब्राह्मंड में ही सूर्यदेव अपना सर्वोप्रमुख स्थान रखते हैं. ज्योतिषशास्त्र जहाँ ग्रहों की दृश्य-स्थिति का निर्देशक हैं, वहीं सूर्य इन समस्त ग्रहों एवं सम्पूर्ण जगत का पालनकर्ता है, जिन्हे नक्षत्रों एवं ग्रहों का राजा भी कहा जाता है. यह जीवों की आत्मा का अधिष्ठाता है. अत: व्यक्ति का आत्मबल इसी ग्रह से देखा जाता है. अगर किसी व्यक्ति का सूर्य अनिष्ट हो तो उसे जीवन में ह्रदय रोग, उदर सम्बन्धी विकार, नेत्र रोग, धन का नाश, ऋण का बोझ बढ जाना, मानहानि, अपयश, संतान सुख में कमी एवं ऎश्वर्य-नाश आदि दुष्फलों का सामना करना पडता हैं. ऎसे में व्यक्ति को सूर्य नमस्कार, सूर्य पूजा, हरिवंशपुराण आदि का पाठ करना चाहिए.

चन्द्रमा:- न केवल मनुष्य अपितु संसार के समस्त प्राणियों की देह में मन ही वह एकमात्र वस्तु है, जिसमें आगे भविष्य की सभी सम्भावनाओं के अंकुर विद्यामान रहते हैं. इसी मनतत्व का कारक ग्रह है---चन्द्रमा. कहा भी गया है कि 'चन्द्रमा मनसो जात:" अर्थात चन्द्रमा ही मन की शक्तियों का अधिष्ठाता है. अगर व्यक्ति की जन्मकुंडली में चन्द्रमा निर्बल अथवा अन्य किसी प्रकार से अनिष्ट प्रभाव में हो तो मानसिक रूप से तनाव, दुर्बल मन:स्थिति, शारीरिक एवं आर्थिक परेशानी, छाती-फेफडे संबंधी रोग-बीमारी, माता को कष्ट, सिरदर्द आदि जीवन में कष्टकारी स्थितियाँ निर्मित होती हैं. ऎसे में व्यक्ति को अपनी कुलदेवी या देवता की उपासना करनी चाहिए. नि:संदेह लाभ मिलेगा और कष्टों से मुक्ति प्राप्त होगी.

मंगल:- मंगल ग्रह ऋषि भारद्वाज कुलोत्पन्न ग्रह है, जो कि क्षत्रिय जाति, रक्तपूर्ण एवं पूर्व दिशा का अधिष्ठाता है. जिन व्यक्तियों का जन्मकुंडली में मंगल अच्छा होता है, उनका भाग्योदय 28वें वर्ष की आयु मेम आरम्भ हो जाता है. मनुष्य में विज्ञान एवं पराक्रम की अभिव्यक्ति मंगल ग्रह के फलस्वरूप ही होती है. सत्ता पलट एवं राजनेताओं की हत्या के पीछे अशुभ मंगल की बडी अहम भूमिका होती है. क्योंकि यह भाई से विरोध, अचल सम्पत्ति में विवाद, सैनिक-पुलिस कारवाई, अग्निकाँड, हिँसा, चोरी, अपराध और गुस्से का कारक ग्रह है. इससे जिगर के रोग, मधुमेह, बवासीर एवं होंठ फटना आदि स्थितियाँ भी उत्पन्न होती हैं. ऎसे में व्यक्ति को हनुमान जी की उपासना---जैसे सुन्दरकांड, हनुमान बाहुक, हनुमदस्तोत्र, हनुमान चालीसा आदि का नित्यप्रति पाठ करना चाहिए और साथ में मिष्ठान आदि प्रशाद रूप में गरीबों में बाँटते रहना चाहिए. ध्यान रहे---वह प्रशाद स्वयं न खाये.

बुध:- यह शूद्र जाति, हरितवर्ण तथा पश्चिम दिशा का स्वामी ग्रह है, जो कि शुभ होने पर जीवन के 32वें वर्ष में भाग्योदय कराता है. यह विलक्षण व्यापारी बुद्धि, शीघ्रता व हास्य-विनोद का कारक ग्रह है. अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बुध ग्रह विपरीत, अनिष्टकारक स्थिति में हो , तो पथरी, गुर्दा, स्नायु रोग अथवा दाँतों संबंधी किसी रोग-व्याधि का सामना करना पडता है. बुद्धि में भ्रम बना रहता है, स्मरण शक्ति क्षीण होने लगती है, साथ में कार्य-व्यवसाय संबंधी लिए गये महत्वपूर्ण निर्णय विपरीत सिद्ध होने लगते हैं.
ऎसे में व्यक्ति को दुर्गा सप्तशती का कवच, कीलक व अर्गला स्तोत्र का नित्य पाठ करना चाहिए. साथ में गौमाता की सेवा करते रहें.


बृहस्पति :- उत्तर दिशा का स्वामी ग्रह बृहस्पति देवताओं का गुरू है. इसकी कृपा मात्र से ही संसार को ज्ञान तथा गरिमा की प्राप्ति होती है. यह अपने तेज से समूचे संसार को चमत्कृत कर देता है. जन्मकुंडली में बृहस्पति के शुभ होने की स्थिति में यह 16वें वर्ष से ही व्यक्ति का भाग्योदय कराने लगता है. किन्तु यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में यह अशुभ अथवा निर्बल हो तो संतान सुख में कमी, गृहस्थ जीवन में व्यवधान, स्वजनों से वियोग, जीवनसाथी से तनाव एवं घर में आर्थिक विपन्नता निर्मित करता है. गौरतलब है कि तब पीलिया, एकान्तिक ज्वर, हड्डी का दर्द, पुरानी खाँसी का उभरना, दमा अथवा श्वसन संबंधी रोग-बीमारी भी प्रदान करता है.
ऎसे में व्यक्ति को हरि पूजन, हरिवंश पुराण या श्रीमदभागवत क नित्यप्रति पाठ करना चाहिए.

शुक्र :- शुक्र दैत्यों के गुरू हैं, भृगु ऋषि के पुत्र होने के कारण जिन्हे भृगुनन्दन भी कहा जाता है. वीर्यशक्ति पर शुक्र ग्रह का विशेष आधिपत्य है. यह कामसूत्र का कारक है ओर शुभ होने की स्थिति में व्यक्ति का 25वें वर्ष की आयु में भाग्योदय करा देता है. अगर जन्मकुंडली में शुक्र निर्बल अथवा अनिष्ट स्थिति में हो तो व्यक्ति को खुशी के अवसर पर गम, भूतप्रेत बाधा, शीघ्रपतन, सेक्स संबंधी परेशानी, संतान उत्पन्न करने में अक्षमता, दुर्बल-अशक्त शरीर, अतिसार, अजीर्ण, त्वचा एवं वायु विकार इत्यादि कईं तरह के कष्टों का सामना करना पडता है. इसलिए व्यक्ति को शुक्र की शुभता बनाये रखने की खातिर सदैव श्रीलक्ष्मी जी का सानिध्य प्राप्त करना चाहिए. नित्यप्रति श्रीसूक्त का पाठ करते रहें.

शनि:- पश्चिम दिशा का अधिष्ठाता शनि ग्रह सूर्य-पुत्र माना जाता है. इसके द्वारा कठिन कार्य करने की क्षमता, गम्भीरता और पारस्परिक प्रेम आदि की भावना जागृत होती है. साथ ही पति-पत्नि में मनमुटाव, गुप्त रोग, अग्निकाँड, दुर्घटना, अयोग्य संतान, आँखों में कष्ट, पेचिश, अतिसार, दाम, संग्रहणी, मूत्र विकार, जोडों घुटनों में दर्द, ह्रदय दौर्बल्य, कब्ज आदि विभिन्न प्रकार के रोगों की उत्पत्ति होती है. जन्मकुंडली में इसके शुभ होने की स्थिति में जहाँ ये 36वें वर्ष में व्यक्ति का भाग्योदय करा देता है, वहीं यदि ये निर्बल या अनिष्ट हो तो उपरोक्त वर्णित कईं तरह के दु:साध्य कष्टों का सामना करना पडता है. ऎसी स्थिति में भैरव जी की उपासना व्यक्ति के लिए अति कल्याणकारी सिद्ध होती है. नित्यप्रति संध्या समय भैरव स्तोत्र का पाठ करें एवं मद्यपान निषेध रखें तो अवश्य मनोवांछित लाभ होगा.

राहु:- राहु एक छाया ग्रह है.राहु राजनीति के क्षेत्र का सर्वोप्रमुख कार्केश ग्रह है, जो कि अशुभ प्रभावों में विशेष लाभकारी रहता है. इसके विपरीत होने की स्थिति में आकस्मिक घटना, वैराग्य, ऋण का भार चढ जाना, शत्रुतों की तरफ से पीडा-परेशानी, लडाई-झगडा, जेलयात्रा, मुकद्दमा-कोर्ट कचहरी, अपमानजन्य स्थितियाँ, मिरगी-तपेदिक-बवासीर एवं विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों का सामना करना पडता है.
 ऎसी स्थिति उत्पन होने पर व्यक्ति को सरस्वती आराधना का आश्रय लेना चाहिए. नित्यप्रति श्रीसरस्वती चालीसा का पाठ करे, साथ में कम से कम एक बार किसी गरीब कन्या के विवाह पर यथासामर्थ्य धन की मदद करे तो अशुभता को शुभता में बदलने मे देर नहीं लगेगी.

केतु:- केतु भी राहु की भान्ति ही छाया ग्रह है, जिसका प्रभाव बिल्कुल मंगल की तरह होता है. इसके निर्बल होने या दुष्प्रभाव से निगूढ विद्याओं का आत्मज्ञान होना अथवा मन में वैराग्य के भाव जागृत होना मुख्य फल है. मूर्छा, चक्कर आना, आँखों के अन्धेरा छा जाना, रीढ की हड्डी में चोट/रोग, मूत्र संबंधी विकार, ऎश्वर्य नाश अर्थात जीवन में सब कुछ पाकर एक दम से खो देना, पुत्र का दुर्व्यवहार तथा पुत्र पर संकट इत्यादि भीषण दु:खों का सामना करना पडता है.
इसके कुप्रभावों से मुक्ति प्राप्त करने हेतु व्यक्ति को एक बार जीवन में बछिया का दान अवश्य करना चाहिए. साथ में गणेश जी की उपासना करें तो कष्टों से अवश्य छुटकारा मिलेगा.

भारतीय ज्योतिष और काल सर्प दोष


कालसर्प योग को समझना और उसके प्रति सजगता
सही मायनों में आज अधिकतर व्यक्ति इस योग के प्रति बेखबर हैं. जब कि कुछ के सिर इसका हौव्वा चढा हुआ है. जातक का भय तब और भी बढ जाता है, जब कोई ज्योतिषी अतिश्योक्ति से इस योग का बखान करता है. वस्तुत: यह योग विध्वंसकारी न होकर चमतकरी भी है. बस समय रहते इसका ज्ञान और उपाय करना आवश्यक है. समझदार विद्वान ज्योतिर्विद बिना अतिरिक्त लाभ उठाये यदि सही मार्गदर्शन करे तो इसका निदान अवश्य हो जाता है.

इस योग की ये विशेषता है कि कालसर्प योग में जन्म लेने वाले जातकों का जन्म निश्चित रूप से कर्म भोग के लिए ही होता है. वो आत्मा किसी विशेष उद्देश्यपूर्ति के लिए ही जन्म लेती है. ईश्वर द्वारा सूक्ष्म दिव्य-संचालन का कार्यभार सौरमंडल के इन दो ग्रहों--राहु-केतु के जिम्मे सौंपा गया है. सृष्टि में व्याप्त माया का दूसरा नाम है राहू और उससे मुक्ति अर्थात मोक्ष का नाम है केतु. राहू जहाँ माया के रूप में जगत को बाँधता हैं, वहीं केतु उस माया के बँधन से मुक्त का मार्ग दिखाता है. लेकिन कालसर्प ग्रसित जातक माया के इस बँधन में बहुत गहरे फँसा होता है. इसलिए ही कालसर्प योग पीडित जातक सामान्य व्यक्ति से कुछ अलग होते हैं. विचारों से भी, व्यक्तित्व से भी और जीवन की परिस्थितियों से भी-----पूर्णत: भिन्न.

इसके अतिरिक्त जीवन में जहाँ इस योग के अधिकाँश नकारात्मक फल भोगने पडते हैं, वहीं साथ मे जीवन के कुछ अन्य विषयों में इसके सकारात्मक फल भी प्राप्त होते हैं. मूल आधार जन्मकुंडली में राहु-केतु किस भाव में स्थित हैं एवं जन्मकुंडली अनुसार व्यक्ति के भाग्य की प्रबलता कितनी है, इस पर परिणामों की तीव्रता अवलंबित रहती है.
जन्मकुंडली के चतुर्थ, अष्टम या व्यय भाव में राहू और कुंडली में कालसर्प योग हो तो वह अधिक नकारात्मक होगा. इस योग के अधिक-से-अधिक फल राहू की महादशा या किसी अन्य ग्रह की महादशा में राहू की अन्तर्दशा अवधि में मिलेंगें. इसके अतिरिक्त राहु अशुभ गोचर भ्रमण में भी इसके दुष्परिणाम देखने को मिलते रहेंगें.

'कालसर्प योग' सकारात्मक हो तो जन्मकालीन राहु पर से गोचर के राहु के भ्रमण काल में इसके श्रेष्ठ-फलों की प्राप्ति होती है.रिलायंस इन्डस्ट्रीज के संस्थापक श्री धीरू भाई अम्बानी का जीवन इसका तगडा उदाहरण है. जीवन में राहू का समय आने पर ही धीरूभाई 'शून्य' से 'ब्राह्मण्ड' प्राप्त कर सके.

हर्षद मेहता नाम से भला कौन अपरिचित होगा. उनकी जन्मकुंडली में चतुर्थ भाव स्थित राहु नें ही उन्हे शेयर मार्किट के सिँहासन से गिराकर धूल में मिला डाला. धनु के राहु का गोचर भ्रमण आरम्भ होते ही उनके रहस्यों का पर्दाफाश हुआ और वो कानून के शिकंजे में फंसते चले गए.

भारत की कुंडली में भी कालसर्प योग है. इस 'कालसर्प योगी' भारत को स्वतन्त्रता के बाद पं. जवाहरलाल नेहरू के रूप में प्रथम प्रधान्मत्री "कलसर्प योगी" ही प्राप्त हुआ. भारत की कुंडली में विद्यमान यह योग भी अपने आप में बहुत कुछ कहता है. भ्रष्टाचार,घोटालों, लूट-खसोट, आंतकवाद, अराजकता और सामाजिक-सांस्कृतिक पतन के रूप में देश की इस वर्तमान दुर्दशा का एकमात्र कारण ये कालसर्प योग ही है.


(कालसर्प भाग..२ आगे पढें)

भारतीय ज्योतिष और पितृ दोष

'सीमा' एक ऎसा शब्द है जिससे सम्पूर्ण विश्व जुडा हुआ है और उससे प्रभावित भी होता है. प्रत्येक वस्तु, प्रत्येक प्राणी इस शब्द से प्रत्यक्ष रूप से जुडा है, सभी की अपनी एक सीमा होती है, एक मर्यादा होती है. जब भी इस सीमा का, इस मर्यादा का किसी भी तरह से उल्लंघन किया जाता है तो अहित होना निश्चित है. उदाहरण के लिए जल को ही लीजिए, जब तक जल अपनी मर्यादा में है, अपनी सीमा में है---तब तक हम सभी के लिए प्राण देने वाला है. परन्तु यदि जल अपनी सीमाओं को लाँघकर समुद्र से निकलकर शहर में आ जाये, उसकी लहरें मकानों को ध्वस्त कर दें, तो क्या होगा ? हवा जब तक मध्यम गति से बह रही है हमारी श्वासें चल रही हैं, परन्तु यदि हवा अपनी सीमाओं को लाँघ जाये, अपनी मर्यादा छोड दे, अपना अनुशासन त्याग दे, तो क्या होगा ? आँधी और तूफान, चारों ओर हाहाकार ही हाहाकार.

अत: यह तो स्पष्ट है कि प्रत्येक वस्तु, प्रत्येक प्राणी एक सीमा में, एक मर्यादा में है, अनुशासन में है---तब तक ही वह सबके लिए उत्तम है, कल्याणकारी है. यह बात हमारे घर-परिवार व धार्मिक संस्कारों पर भी लागू होती है. परिवार के सदस्य सीमाओं का उल्लंघन करें, मर्यादाओं को ताक पर रख दें तो क्या होगा ? निश्चित है कि समस्त परिवार को कष्ट उठाना ही पडेगा. एक घर-परिवार का अनुशासन टूटेगा, मर्यादा भंग होगी तो उसका प्रभाव आसपास के घरों में, मोहल्ले में और समाज पर भी निश्चित रूप से पडेगा. इसी प्रकार परिवार के मुखिया द्वारा जो सत्कर्म एवं दुष्कर्म किए जाते हैं, उनका फल उसके जाने के बाद पारिवारिक सदस्यों को भुगतना पडता है, विशेषकर उसकी सन्तान को. अब यह फल अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी, जो कि उस मुखिया द्वारा किए गए कर्मों पर निर्भर करता है. यदि परिवार के मुखिया द्वारा अच्छे कार्य किए गए हैं, तो निश्चित रूप से वह अपने परिवार को सम्पन्नता एवं प्रसन्नता दे पाएगा. यदि उसने अनैतिक एवं दुराचार ही किए हैं तो वह अपने परिवार को अपमान,घृणा एवं दु:खों के अतिरिक्त भला ओर दे भी क्या सकता है.

इस प्रकार के दुष्परिणाम ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष के नाम से जाने जाते है. यह पितृदोष अपने किसी पूर्वज द्वारा मर्यादा भंग करने से होते हैं. इनके कारण व्यक्ति आर्थिक संकट, विभिन्न कार्यों में बाधा, विवाहादि में रूकावटें, पारिवारिक झगडे, अपमान, अपयश, दोषारोपण, ऋणग्रस्तता, व्यापार/व्यवसाय में घाटा, नौकरी आदि में बार-बार परेशानियाँ आदि अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पडता है.

जानिये-----कहीं आपकी कुंडली में पितृदोष तो नही?....

आपका मुख्य ग्रह और समस्त जीवन पर उसका प्रभाव

प्रत्येक जन्मकुंडली का एक प्रधान (मुख्य) ग्रह होता है जिसका प्रभाव सारी उम्र उस जातक पर रहता है. या युं कहले कि उसी ग्रह के अनुसार जातक का समस्त जीवन संचालित होता है. इस श्रंखला में हम आपको बता रहे हैं विभिन्न ग्रहों के क्या प्रभाव होते हैं अगर वो आपकी जन्मकुंडली के प्रधान ग्रह हो तो.



१. आपका प्रधान ग्रह सूर्य हो तो...
२. आपका प्रधान ग्रह चंद्रमा हो तो...
३. आपका प्रधान ग्रह मंगल हो तो...
४. आपका प्रधान ग्रह बुध हो तो...
५. आपका प्रधान ग्रह गुरू हो तो...
६. आपका प्रधान ग्रह शुक्र हो तो...
७. आपका प्रधान ग्रह शनि हो तो...
८. आपका प्रधान ग्रह राहु हो तो...
९. आपका प्रधान ग्रह केतु हो तो...

ज्योतिष और संतान सुख

आजकल शादी-विवाह काफ़ी विलंब अर्थात बडी आयु में होने लगे हैं, क्योंकि लडका लडकी दोनों ही पहले अपने कार्य व्यवसाय में सेटलमेंट होने के पश्चात ही विवाह की तरफ़ कदम बढाते हैं. ऐसे में विवाह के पश्चात अगला कदम संतान प्राप्ति की तरफ़ होता है परंतु अक्सर कई दंपतियों को संतान प्राप्ति में स्वस्थ होने के बावजूद भी बाधाओं का सामना करना पडता है.
अगर निम्न योग किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में विद्यमान हों तो उसे हर हालत में योग्य संतान की प्राप्ति अवश्य होती है. विशेष परिस्थियों में अर्थात जैसे कि योगकारक ग्रह के नीच, कमजोर अथवा शत्रु क्षेत्री होंने पर भी कुछ सामान्य उपायों द्वारा संतान की प्राप्ति की जा सकती है.
आईये जानते हैं उन योगों के बारे में:------

1. अगर पति पत्नि दोनों की जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का आपस में भाव परिवर्तन हो, अथवा श्रेष्ठ भावों में युति हो तो सुंदर और भाग्यशाली पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होती है.

2. कुटुम्ब भाव का स्वामी अगर बलशाली होकर पंचम भाव को देखता हो अथवा पंचमेश से संबंध कारक हो रहा हो, साथ ही गुरू की भी पंचम भाव पर संपूर्ण दॄष्टि हो तो सुयोग्य पुत्र की प्राप्ति होती है.

3. पति-पत्नि दोनों की जन्मकुंडली में सप्तमेश के नवांश का अधिपति लग्नेश, कुटुम्ब भाव के स्वामी और भाग्येश इन तीनों द्वारा दृष्ट हो तो निश्चय ही पुत्र प्राप्ति होगी.

4. पति पत्नि की जन्मकुंडली में जिन महादशा-अन्तर्दशाओं में भी पंचम भाव व पंचमेश का संबंध बनेगा तब पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी इसके विपरीत जब भी एकादश भाव एवं एकादशेस का संबंध होगा उस दशा में सुंदर और सुभाग्यशालिनी कन्या की प्राप्ति होती है.

अत: विवाह पश्चात अपनी जन्मकुंडली में सन्तानोत्पत्ति हेतु अनुकूल एवं उचित समय की जानकारी अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहिये.

क्या आपके भाग्य में विदेश यात्रा का योग है ?

पुरातन काल में जहाँ विदेश यात्रा को निकृष्ट समझा जाता था, वहीं आज के इस भौतिक युग में विदेश गमन से प्राप्त होने वाले धन लाभ और शिक्षा के महत्व ने विदेश निवास को सम्मान की श्रेणी में ला खडा किया है. वर्तमान में अच्छे व्यापार, नौकरी के विदेश में अधिक सुअवसर प्राप्त होने, अच्छा वैवाहिक संबंध मिलने की वजह से भी विदेश में जाने की चाह उत्कुट हुई है. लेकिन ऐसा सभी तो नही कर सकते.
आईये आज हम आपको कुछ ज्योतिषीय योग बतलाते हैं जिसे अपनी कुंडली में देखकर आप स्वयं ही इस विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं कि आपके भाग्य में विदेश यात्रा है अथवा नहीं ?

1, लग्न दशम या द्वादश भावों से जब राहु का योग बनता है तब भी विदेश यात्रा का अवसर मिलता है, साथ ही लग्नेश स्वयं द्वादश भाव गत हो निश्चय ही विदेश गमन होता है.

2. यदि लग्नेश लग्नगत और नवमेश स्वग्रही हो तो विदेश भ्रमण का मौका अवश्य मिलता है. नवम भाव में स्वराशि या उच्च का शनि भी कई विदेश यात्राओं के अवसर प्रदान करता है. इसी प्रकार लग्नेश नवमेश का आपस में स्थान परिवर्तन भी विदेश यात्रा के सुअवसर उपलब्ध कराता है.

3. तॄतीयेश, नवमेश एवम द्वादशेश का किसी दशा अंतर्दशा में आपसी संबंध बन रहा हो जातक को अक्सर कई विदेश यात्राएं करने का मौका मिलता है.

4. सूर्य अष्टम भावगत हो तब, अष्टमेश अष्टम भाव में हो तब अथवा दशमेश द्वादश भावगत हो तब भी विदेश यात्रा होती है.

5.जन्म कुंडली के बारहवें भाव में मंगल, राहु जैसे क्रूर ग्रह बैठे हों तब भी विदेश यात्रा का योग बनेगा.

6.जब भी दशा महादशाओं में द्वादश भाव और दशम भाव का संबंध बनता है तब जातक अवश्यमेव विदेश यात्रा करता है.

व्यापारिक अवरोध कैसे दूर करें ?

जीवन-यापन के लिए व्यक्ति को कोई न कोई रोजी रोजगार, व्यवसाय तो अवश्य करना पडता है और हर व्यक्ति यही कामना करता है कि वह जो भी कार्य करता है उसमें दिन-दूनी और रात चौगुनी उन्नति हो. किन्तु यदि किसी को अपने कार्य-व्यवसाय में निरन्तर हानि-परेशानी का सामना करना पड रहा हो, लगातार घाटा उठाना पड रहा हो और इस कारण व्यक्ति आर्थिक संकटों में घिरा हो तो उन्हे निम्नलिखित मन्त्र की शरण लेनी चाहिए. यह मन्त्र उनके घाटे-नुक्सान की भरपाई तो करेगा ही, साथ ही व्यापार में आशाजनक लाभकारी वृद्धि भी करेगा.

ॐ श्रीं श्रीं श्रीं परमां सिद्धि श्रीं श्रीं श्रीं
किसी भी महीने की त्रयोदशी तिथि अर्थात प्रदोष के दिन निराहार रहें और केवल फलाहार ही करें. सांयकाल शिवलिंग पर शुद्ध घी का आटे का दीपक जलायें. तदुपरान्त रात्रिकाल में इस मन्त्र की 5 माला जाप करें. यह क्रिअय लगातार 7 प्रदोष वारों तक करें तो इससे व्यापार के समस्त अवरोध समाप्त हो जायेंगें तथा वह खूब फलने-फूलने लगेगा. तीसरे प्रदोष से ही आपको इसके शुभ फल दिखाई देने लगेंगें.

वैदिक ज्योतिष और रोजगार के सूत्र


व्यक्ति को जीवन में रोजगार, व्यवसाय, पद प्राप्ति, नौकरी आदि के कौन से अवसर प्राप्त होंगे अथवा जातक की आर्थिक स्थिति कैसी रहेगी, के संबंध में विस्तार पूर्वक जानकारी प्रदान की जा रही है. यहां कुछ मूल सिद्धांतो, ग्रहों के सांमंजस्य से बनते रोजगार एवं व्यवसायों, पद प्राप्ति व नौकरी प्राप्ति से संबंधित समस्याओं पर प्रकाश डाला जा रहा है.

१. व्यक्ति को सरकारी सेवा/ नौकरी/रोजगार/व्यापार अथवा कोई पद प्राप्त होगा, जन्मकुंडली के प्रथम, द्वितीय, दशम एवं एकादश भावों में ग्रहों की स्थिति एवं इन भावों के स्वामी ग्रहों की स्थिति एवं इन सब पर पडते अन्य ग्रहों के प्रभाव पर निर्भर करती है. यदि दसवें भाव का स्वामी ग्रह किसी प्रकार भी पहले, दूसरे, छठें एवं ग्यारहवें भावों से संबंध रखता है तो व्यक्ति को हर हालत में अच्छे रोजगार की प्राप्ति होती है. तथा वो पूर्णतया लाभदायक सिद्ध होता है.

२. जन्मकुंडली में अधिकांश ग्रह जिन राशियों में हो उस राशि के तत्व गुण, स्वभाव एवं जिस जिस रोजगार को वह राशि सूचित करती है, व्यक्ति का स्वाभाविक झुकाव उन्हीं कार्यों की तरफ़ होता है.

३. दो या दो से अधिक क्रूर ग्रहों के साथ केतु जब मेष, वृश्चिक, मकर या कुंभ में से किसी राशि में हो तो व्यक्ति को निराशा, असफ़लता, हार तथा बार बार नौकरी छूटने का कष्ट सहन करना पडता है.

४. दसवें भाव का स्वामी ग्रह शुभ स्थिति में नौवें या बारहवें भाव में बृहस्पति के साथ स्थित हो तो व्यक्ति विदेश में सफ़लता प्राप्त करता है.

५. जब जन्मकुंडली में शनि से आगे राहु ( जैसे जन्मकुंडली में शनि पांचवें भाव में और राहु सातवें भाव में हो) होता है और इन दोनों के मध्य अन्य कोई ग्रह ना हो तो व्यक्ति को पहले ३५ वर्ष तक की आयु में रोजगार संबंधी कष्टों और परेशानियों का सामना करना पडता है. किसी भी काम में उसके पूरी तरह से पैर नही जम पाते.

६. जन्मकुंडली मे बुध ग्रह कहीं भी अकेला एवं अशुभ प्रभाव से दूर हो तो व्यापार में जातक अत्यधिक उन्नति प्राप्त करता है.

७. यदि अधिकांश ग्रह जनमकुंडली में तीसरे, दसवें, ग्यारहवें एवं बारहवें अथवा ७, ८, ९, १०. ११ एवं १२ वें भाव में बैठे हों और उन्हीं में सूर्य ग्रह भी सम्मिलित हो तो जातक के लिये नौकरी करना अथवा जनहित विभागों में कार्य करना ही लाभ प्रद रहता है. ऐसे व्यक्ति जीवन में कभी भी स्वयं के निजि व्यापार में प्रगति नही कर सकते.




10 वें भाव में स्थित ग्रह अथवा 10 वें भाव का स्वामी ग्रह



रोजगार/ व्यवसाय
सूर्य
बहुत आशाएं और उमंगे रखने वाला, जीवन में उच्च अधिकारी बनना चाहे, उच्च पद प्राप्ति, सरकारी सेवा, नौकरी में रहना कठिन, डाक्टर, लीडर या प्रबंधकीय कार्यों में सलंग्न.
चंद्रमा
व्यापार, प्रोविजन स्टोर, कृषि, जलीय पदार्थ, पैतृक व्यवसाय में सलंग्न, रोजगार में परिवर्तन हेतुबार बार विचार उठते रहें.
मंगल
जोखिम के कार्य, पुलिस सेना, मैकैनीकल, सर्जन, धातु का कार्य, केमिस्ट, फ़ायर ब्रिगेड, होटल, ढाबा, अग्नि से संबंधित कार्य, डाईवर, बीमा, मेकेनिक एवं इंजीनीयर आदि.
बुध
व्यापारी, ज्योतिषी, प्रिंटिंग कार्य, सेक्रेटरी, लेखक, अकाऊंटेंट, क्लर्क, आडीटर, एजेंट, पुस्तक विक्रेता, दलाल, अनुवादक, अध्यापक, सहायक, नर्सिंग, मुंशी, स्पीडपोस्ट, कोरियर इत्यादि का कार्य.
गुरू
शिक्षक, प्रकाशक, जज, न्यायाधीश, वकील, धार्मिक नेता, कथावाचक, पुरोहित, बैंक अधिकारी, मेनेजर, कपडा स्टोर, प्रोविजन स्टोर, सलाहकारिता आदि के कार्य
शुक्र
स्वास्थ्य विभाग, अस्पताल, मेटरनिटी होम, सोसायटी, रेस्टोरेंट, रेडीमेड वस्त्र, मनियारी की दुकान, फ़ोटोग्राफ़ी, गिफ़्ट आयटम, आभूषण एवं स्त्री जाति से संबंधित विभाग/कार्यक्षेत्र
शनि
लेबर, लेबर विभाग, प्रबंधक या फ़िर अधिनस्थ सेवा में उच्चपद, अधिकारी, उद्योगपति, डाक्टर, रंग रसायन, पेट्रोकेमिकल इत्यादि.
(सब्र संतोष, सुझबूझ रखे तो व्यवसाय ठीक चले, जल्दबाजी करे तो मुश्किले खडी हों और हानि हो, दुर्घटनाएं, निराशा एवं घाटे का मुंह देखना पडे.)
राहु
डाक्टर, कसाई, सफ़ाई कर्मचारी, जेल विभाग, विद्युत विभाग, लेखक उच्चाधिकारी एवम उच्च पद प्राप्ति.
(यदि सूझबूझ रखे और दिमाग से काम ले तो उन्नति करे नही तो अपना काम स्वयं ही बिगाडे.)
केतु
गुप्त विद्या, तांत्रिक, ज्योतिषी, होम्योपैथी/आयुर्वेद/नेचरोपैथी का डाक्टर, ट्रेवल एजेंट, फ़र्नीचर का काम, पशुओं का व्यापारी.
(जितना घूमने फ़िरने वाला हो उतना ही लाभ प्राप्त करे.)