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लाल किताब


लाल किताब----अरबी, फारसी और उर्दू भाषा के शब्द और शैली से समृद्ध इस अलौकिक किताब को किसने सर्वप्रथम लिखा, यह बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता. दरअसल ये कोई एक पुस्तक न होकर अनुभूत श्रुति है. जिसे कालान्तर में ज्योतिष मनीषियों नें विधिवत क्रमबद्ध से अपने-अपने अनुभवों के आधार पर ज्यों का त्यों लिखने का प्रयास किया.

'लाल-किताब' मूलत: प्राचीन भारतीय वेदकालीन तन्त्र ज्योतिष के महान ग्रन्थ 'अरूण-संहिता' और यूनान के तिलस्मी, अरब के ज्योतिष फकीरों और भारतवर्ष के तन्त्रमार्गी ज्योतिर्वेदों द्वारा ग्रहों के अनुकूलन हेतु बताये गए और अपनाये गए ज्योतिष सिद्धान्तों का लेखा-जोखा है. हम जानते हैं, कि जिस प्रकार आध्यात्मिक उपलब्धियों और सिद्धियों के लिए सात्विक साधना को अपनाया जाए तो उनमें सफलता हेतु अत्यधिक विलम्ब का सामना करना पडता है. कईं बार तो सफलता के लिए जन्म पर जन्म लेना पडता है. जब कि तन्त्रमार्ग अपनाने पर ईष्ट सिद्धियाँ, भौतिक सिद्धियाँ ओर यहाँ तक कि अष्ट-सिद्धियाँ और नव-निधियाँ साधक को सहज और कम समय में प्राप्त हो जाती हैं. उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र में भी अशुभ और विपरीत फल देने वाले अनिष्ट ग्रहों को यदि सात्विक साधना से अनुकूलित करते हैं तो धन, समय और अत्यधिक श्रम लगता है. इसलिए तन्त्रमार्गी ज्योतिर्विदों, सन्तों, फ़कीरों द्वारा जन समाज को इन ग्रहों से सहज लाभ उपलब्ध कराने की दृष्टि से अपने-अपने ईष्टों की कृपा से सैकडों प्रकार के उपायों का प्रतिपादन किया. इन्ही उपायों का विधिवत लिखित रूप 'लाल-किताब' है.

ज्योतिष विद्या को जानने,समझने, अपनाने वाले या इस पर विश्वास रखने वाले रूचिवान लोगों में से आज शायद ही कोई ऎसा व्यक्ति हो, जो ज्योतिष विद्या की 'लाल-किताब' के बारे में सकारात्मक या नकारात्मक अर्थात कुछ न कुछ नहीं जानता होगा. वर्तमान में तो प्राय: आम व्यक्ति भी लाल-किताब को जानने, समझने के साथ ही उसके उपायों को अपनाने लगे हैं. खैर, अपनाना भी चाहिए, क्योंकि वर्तमान में वैज्ञानिक अनुसन्धान और कम्पयूटर के इस भागदौड भरे युग में जप-तप ईश्वर दर्शन, लम्बे क्लिष्ट अनुष्ठान करने के बाद शन्ति के अवसर भला कौन प्राप्त करना चाहेगा ? जब चारों ओर मन, शरीर और आत्मा की प्रसन्नता के लिए सैकडों भौतिक सुख-संसाधनों की खोज हो चुकी हो, ऎसे समय में धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टि से ग्रह शान्ति करना बडा महंगा और उबाऊ लगता है. लाल-किताब हमें इसी से बचाती है. कम व्यय:, कम समय और कम परेशानियों में अधिकाधिक लाभ प्राप्त कराती है.

अब मुख्य प्रश्न यह उठता है, कि क्या ऎसा सम्भव है कि कम श्रम में हमें अधिक लाभ मिले ? जी हाँ, ऎसा सम्भव है. क्योंकि हम अपने दैनिक जीवन में नित्य देखते हैं कि लभगभ सौ-डेढ रूपये प्रतिदिन कमाने वाला एक मजदूर दिन भर कठोर श्रम करता है, पसीना बहाता है, रूखी-सूखी रोटी खाता है, फिर भी तमाम जीवन फटेहाल स्थिति में गुजार देता है. अपमान, अभाव और जिल्लत की जिन्दगी ही उसके भाग्य में होती है. उसके विपरीत 5-6 हजार महीना कमाने वाला क्लर्क दिनभर पंखें, कूलर, ए.सी. की ठंडक में कुर्सी पर बैठकर काम करता है. सैकडों लोग उसके चक्कर लगाते हैं, अर्थात उसका सम्मान करते हैं. वो आदमी साफ-स्वच्छ  कपडे पहनता है, अच्छे मकान में अच्छे प्रतिष्ठित लोगों के बीच रहता है. उसका परिवार सम्मान से जीता है.

बताईये, समान मात्रा में धन कमाने वालों के इतने असमान जीवन स्तर क्यों ? दरअसल यहीं से लाल-किताब और उसमें लिखे उपायों की आवश्यकता महसूस होती है, क्यों कि मजदूर की जन्मकुंडली देखने पर प्रतीत होता है कि उसमें दसवें भाग में पापी ग्रह शनि पाप राशि में स्थित है, जो उसे संघर्ष युक्त जीवन जीने हेतु विवश किए हुए है. इसके विपरीत क्लर्क की जन्मकुंडली में दसवें स्थान पर शुभ गुरू शुभ राशि में है, जो उसे सभी प्रकार से सुख-सुविधा और जीवन की लाभदायक स्थितियाँ प्रदान कर रहा है. अब यदि दसवें स्थान से शनि के प्रभाव को हटाकर वहाँ गुरू का प्रभाव उत्पन्न कर दिया जाए तो वो मजदूर भी क्लर्क के समान अच्छा जीवन यापन कर सकता है. इसी प्रकार हमारे जीवन से अशुभ घटनाओं, हानिकारक फलों को कम कर शुभ घटनाओं और लाभदायक परिस्थितियों का निर्माण कराने में लाल-किताब एक कल्पवृक्ष का काम करता है.