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प्रेम विवाह की सफ़लता या असफ़लता के लिये जिम्मेदार स्थितियां

जैसे--जैसे बच्चों की आयु बढने लगती है, त्यों-त्यों माता-पिता को उनकी विवाह-शादी की चिन्ता सताने लगती है. भारतीय समाज में अधिकाशंत: निर्धारित शादियां करने की ही परम्परा रही है. हालाँकि, पुरातन काल में विवाह की कईं प्रकार की परंपरायें प्रचलन में थी. इच्छित विवाह एवं स्वयंबर तथा गंधर्व विवाह भी हुआ करते थे. कुछ राजा लोग अपनी पुत्री की शादी के लिये किसी बात का प्रण ले लेते थे और उस प्रण को पूरा करने वाले का वरण कन्या को चाहे अनचाहे करना ही पडता था. भगवान राम एवं सीता जी का विवाह भी इसी परंपरा मे हुआ था.

आज के समय में जब लडका और लडकी दोनों ही पढे लिखें हैं और समान रूप से कामकाजी हो गये हैं. घर, शहर और विदेश में अकेले रह कर काम कर रहे हैं तभी से प्रेम विवाह का चलन बढा है. लेकिन यह बात भी उतनी ही सत्य है कि आज के समय में पालक प्रेम विवाह को अच्छी नजर से नही देखते हैं और यथा संभव प्रेम विवाह में रोडे ही अटकाने की कोशीश करते हैं. लेकिन अगर जन्मकुंडली में प्रेम विवाह के योग बने हुये हैं तो वो रोकने की लाख कोशीश करले उसको रोक नही पाते. इसी वजह से कई जोडे घर से भागकर मंदिर में शादी कर लेते हैं.

यहां एक बात कहना उचित होगा कि अगर जन्मकुंडली में प्रेम विवाह का योग परिलक्षित हो रहा हो तो पालको को चाहिये कि शांत दिमाग से काम लेकर किसी योग्य ज्योतिषी से बच्चों की कुंडली का अध्ययन अवश्य करवा लेना चाहिये जिससे यह पता लगाया जा सके कि ये प्रेम संबंध सफ़ल होकर सुख शांति बनी रहेगी या ये प्रेम संबंध सिर्फ़ अनैतिक संबंधों तक ही सीमित होकर कलह का कारण बनेंगे.

प्रेम संबंध और प्रेम विवाह के लिये लडका लडकी की कुंडली के पंचम भाव का भलिभांति अध्ययन कर लेना चाहिये. प्रेम का संबंध पंचम भाव से होकर जीवन साथी का भाव सप्तम होता है. विवाह का कारक शुक्र होकर भोग विलास का दायित्व भी शुक्र का है. इन भावों के अध्ययन से ही स्पष्ट होगा कि ये प्रेमी जोदा सुखपूर्वक जीवन यापन करेगा या एक दुखी जीवन का निर्माण करेगा.

कुंडली के पंचम भाव से स्वाभाविक प्रेम और संतान के बारे में जाना जाता है. सप्तम भाव से इसके तादाम्य के अनुसार ही प्रेम विवाह की सफ़लता असफ़लता का निर्धारण किया जाता है. पंचमेश और सप्तमेश का कुंडली में एक दूसरे से त्रिकोण या केंद्र में होना अति आवश्यक है. यदि ये ग्रह लग्न, नवम भाव, दशम भाव या एकादश भाव में युति करें अथवा केंद्र त्रिकोण में हों तो प्रेम विवाह की प्रबल संभावना बनती है. पंचमेश सप्तमेश और नवमेश और इन भावों की स्थिति मजबूत हो तो एक सफ़ल और सुखद वैवाहिक जीवन व्यतीत होता है. इसके विपरीत पंचमेश, नवमेश और सप्तमेश का संअबंध किसी भी तरह कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो प्रेम विवाह में विफ़लता एवम निराशा ही उठानी पडती है.

निम्न लिखित योग कुंडली में अगर विद्यमान हों तो प्रेम विवाह की संभावना प्रबल होती है:----

१. युति अथवा दॄष्टि द्वारा पंचम, नवम और सप्तम भावो ए भावेशों का संबध बन रहा हो.

२. सांतवे भाव में शनि और केतु की उपस्थिति भी प्रेम विवाह में अति सहायक होती है.

३. जब नवम और सप्तम भाव और उनके अधिपति और गुरू अशुभ भावों से घिरे हों.

४. सप्तमेश एवम शुक्र यदि शनि या राहु से युति करें या उनसे दॄष्ट हों तो भी प्रेम विवाह हो सकता है.

जब द्वादश भाव चर राशि का नही हो एवम उसका संबंध लग्नेश और सप्तमेश के साथ हो जातक घर की परंपाराओं के विपरीत अंतर्जातीय विवाह करता है.

५. लग्न और सप्तम के अधिपति आटवें या पांचवे भाव मे हो अथवा लग्नेश पंचमेश सातवें हों, पंचमेश एवम सप्तमेश लग्न में हों तो मर्यादाओं को लांघते हुये जातक बेधडक प्रेम विवाह करता है.

६. लग्न में चंद्र हो या कर्क राशि हो, अथवा मंगल हो या उसकी राशि हो तो निश्चित तौर पर अंतर्जातीय प्रेम विवाह होता है.
७. पंचमेश, लग्नेश और सप्तमेश का संबंध द्वादश भाव से बने तब भी प्रेम विवाह होता है.

जन्मकुंडली का विस्तॄत अध्ययन करके प्रेम विवाह की सफ़लता या असफ़लता का निश्चित तौर पर पता लगाया जा सकता है.