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साढेसाती क्या है ?

साढेसाती क्या है ?
साढेसाती वह समय है, जब जीवनकाल में जन्मराशि अर्थात चन्द्रराशि से शनि 12वें स्थान पर आता है. शनि एक राशि में लगभग अढाई वर्ष रहता है. जब शनि 12वें स्थान पर आता है तो साढेसाती आरम्भ होती है और जब जन्म अर्थात चन्द्रराशि से दूसरे स्थान से निकलता है तो यह समाप्त होती है. तीन राशियों में शनि का कुल समय साढे 7 वर्ष बनता है, इसलिए इसे साढेसाती कहा जाता है. शनि समस्त 12 राशियों के चक्र को 30 वर्ष की अवधि में पूर्ण करता है. इस तरह किसी भी व्यक्ति के जीवन में साढेसाती अधिकतम कुल तीन बार ही आ सकती है.
साढेसाती का प्रभाव एवं फल
जब भी कोई ज्योतिषी व्यक्ति को यह बताता है कि उसकी साढेसाती आरम्भ हो गई है तो साधारण व्यक्ति का मनोबल यह सुनते ही गिर जाता है. वह तुरन्त सोचने लगता है कि अब उसपर दु:खों, मुसीबतों तथा कठिनाईयों का पहाड टूट पडेगा, क्योंकि साढेसाती सम्बन्धी साधारण लोगों के मन में कुछ इसी प्रकार की गलत धारणा, शंका एवं भय पाया जाता है. जिसका मुख्य कारण अधकचरे ज्योतिषियों द्वारा लोगों के मन में साढेसाती सम्बन्धी अशुभ प्रभावों की बडी ही भयानक तस्वीर निर्मित कर दी गई है. ताकि जहाँ ओर साढेसाती की आड लेकर अपनी ज्योतिषीय अज्ञानता पर पर्दा डाला जा सके और दूसरे इसके जरिये  साधारण जनता के भय का दोहन भी किया जाता रहे. यही कारण है कि जब कोई आम व्यक्ति किसी कष्ट, परेशानी, संकट में फंस जाता है तो वो यही समझने लगता है कि उसकी साढेसाती आरम्भ हो गई है. अब चाहे वो हुई हो या नहीं. चाहे उसके पीछे उसका अपना ही कोई कार्मिक दोष अथवा जन्मकुंडली में प्रतिकूल ग्रहदशा ही कारण क्यों न हो, लेकिन उसके मन में यही विचार आता है कि जरूर उसे शनि की साढेसाती लग गई है. यह साढेसाती के नाम पर फैलाये गये भ्रम और भय का ही परिणाम है. पंडितों द्वारा साढेसाती का हौव्वा दिखलाकर तरह-तरह के दान-पुण्य एवं उपाय बतला अथवा करवा दिए जाते हैं, जिसके कि बेचारा एक आम व्यक्ति ओर भी अधिक चक्रव्यूह में फँस जाता है.
यद्यपि, साढेसाती के कुछ समय में, कुछेक जातकों पर कुप्रभाव होते हैं, जैसे किसी भीषण शारीरिक व्याधि का होना, माता-पिता अथवा जीवनसाथी से मतभेद, रोजगार में नुक्सान, उन्नति में बाधा अथवा अन्य किसी प्रकार की चिन्ता, हानि, परेशानी आदि-------परन्तु जितना इसका दु:ष्प्रभाव होता नहीं, उससे कहीं अधिक लोगों के मन में इसका भय पैदा कर दिया गया है. अत: साढेसाती आरम्भ होने पर किसी प्रकार के भय की कोई आवश्यकता नहीं बल्कि इस अवधि में स्वयं को समझने एवं आत्मबल को सशक्त बनाने का सुअवसर समझना चाहिए तथा इसके शुभ प्रभावों के सम्बन्ध में ही विचार करना चाहिए. यह सदैव स्मरण रखने की आवश्यकता है कि जन्मकुंडली में जब कोई ग्रह बुरे स्थान पर आता है तो कोई न कोई शुभ ग्रह भी बचाव हेतु शुभ स्थान पर आ विराजमान होता है. तभी तो कहा गया है कि मारने वाले से बचाने वाला सदैव बलवान होता है. इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ही शनि की साढेसाती के शुभ/अशुभ प्रभाव बारे विचार करना चाहिए....
अलग अलग राशियों पर पडने वाला शनि की साढेसाती का प्रभाव

जन्म राशि


साढेसाती का प्रभाव

मेष मध्य के अढाई वर्ष अशुभ
वृष आरम्भिक अढाई वर्ष अशुभ
मिथुन अन्तिम अढाई वर्ष अशुभ
कर्क अन्तिम 5 वर्ष अशुभ
सिँह प्रथम 5 वर्ष अशुभ
कन्या आरम्भिक अढाई वर्ष अशुभ
तुला अन्तिम अढाई वर्ष अशुभ
वृश्चिक अन्तिम 5 वर्ष अशुभ
धनु प्रारम्भिक 5 वर्ष अशुभ
मकर अन्तिम अढाई वर्ष अशुभ
कुम्भ अन्तिम अढाई वर्ष अशुभ
मीन अन्तिम अढाई वर्ष अशुभ