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श्राद्ध करना धर्म है !!!

हमारे धर्म शास्त्रों में श्राद्ध के सम्बन्ध में इतने विस्तार से विचार किया गया है कि इसके सामने अन्य समस्त धार्मिक कार्य गौण लगने लगते हैं. श्राद्ध के छोटे से छोटे कार्य के सम्बन्ध में इतनी सूक्ष्म मीमाँसा और समीक्षा की गई है कि विचारशील व्यक्ति तो सहज में ही चमत्कृत हो उठते हैं. वास्तव में मृत माता-पिता एवं अन्य पूर्वजों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किया गया दान ही "श्राद्ध" है. हम यूँ भी कह सकते हैं कि श्रद्धापूर्वक किए जाने के कारण ही इसे श्राद्ध कहा गया है. श्राद्ध से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं पर आईये डालते हैं एक नजर धार्मिक दृष्टिकोण से............!!!
"श्राद्धकल्पता" अनुसार पितरों के उद्देश्य से श्रद्धा एवं आस्तिकतापूर्वक पदार्थ-त्याग का दूसरा नाम ही श्राद्ध है.
पित्रयुद्देश्येन श्रद्दया तयक्तस्य द्रव्यस्य
ब्राह्मणैर्यत्सीकरणं तच्छ्राद्धम !!
"श्राद्धविवेक" का कहना है कि वेदोक्त पात्रालम्भनपूर्वक पित्रादिकों के उद्देश्य से द्रव्यत्यागात्मक कर्म ही श्राद्ध है----श्राद्धं नाम वेदबोधित पात्रालम्भनपूर्वक प्रमीत पित्रादिदेवतोद्देश्यको द्रव्यत्यागविशेष: !
" गौडीय श्राद्धप्रकाश" अनुसार भी देश-काल-पात्र पितरों के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक हविष्याण,तिल,कुशा तथा जल आदि का त्याग-दान श्राद्ध है---देशकालपात्रेषु पित्रयुद्देश्येन हविस्तिलदर्भमन्त्र श्रद्धादिभिर्दानं श्राद्दम !
श्राद्ध न करने से हानि:--
जो लोग यह समझकर कि पितर हैं ही कहाँ---श्राद्ध नही करता, पितर-लोग लाचार होकर उसका रक्तपान करते हैं. जो उचित तिथि पर जल से अथवा भोजा इत्यादि से भी श्राद्ध नहीं करता,पितर उसे श्राप देकर अपने लोक को लौट जाते हैं. मार्कण्डेयपुराण का कहना है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता,वहाँ वीर,निरोगी,शतायु पुरूष नहीं जन्म लेते. जहाँ श्राद्ध नहीं होता, वहाँ वास्तविक कल्याण नहीं होता.
श्राद्ध में महत्व के साथ पदार्थ :--
गंगाजल, दूध,शहद, कुशा,सूती कपडा, दौहित्र और तिल--ये कुल सात श्राद्ध में बहुत ही महत्व के प्रयोजनीय हैं.
इनके अतिरिक्त श्राद्धकर्म में तुलसी की भी विशाल महिमा कही गई है. तुलसी की गंध से पितृगण प्रसन्न होकर, पूर्णत: तृप्ति को प्राप्त कर इस लोक से विष्णुलोक की ओर गमन कर जाते हैं.
श्राद्धकर्ता के लिए वर्ज्य सात वस्तुएं:--
पान खाना, उपवास, स्त्रीसंभोग,औषध,दातुन करना और पराये अन्न का सेवन करना---ये सात वस्तुएं श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित हैं. यदि भूल से इनमें से किसी वस्तु का प्रयोग हो भी जाए तो प्रायश्चित कर 108 बार गायत्री मन्त्र का जाप अवश्य कर लेना चाहिए.
इसके अतिरिक्त श्राद्ध में ताँबें के बर्तनों का बहुत महत्व है. लोहे/स्टील के बर्तनों का श्राद्ध में कदापि उपयोग नहीं करना चाहिए. रसोई बनाते अर्थात खाना बनाने में भी इनका उपयोग नहीं किया जाता. केवल काटने या धोने इत्यादि के लिए इन्हे प्रयोग में लाया जा सकता है.
श्राद्ध में प्रशस्त अन्न:- 
फलादि, काले उडद,तिल,जौं,श्यामक चावल, गेहूँ, दूध के बने सभी पदार्थ, शहद, चीनी,कपूर, आँवला, अंगूर, कटहल, गुड, नारियल, नींबूं, अखरोट इत्यादि पदार्थ प्रशस्त कहे गये हैं. अत: इनका अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए.
श्राद्ध में निषिद्ध अन्न:-
चना, मसूर, सत्तू, मूली, जीरा, कचनार, काला नमक, लौकी, बडी सरसों, सरसों का शाक, खीरा, और कोई भी बासी, गला-सडा,कच्चा, अपवित्र फल या अन्न निषिद्ध है. 
श्राद्ध में पाठय प्रसंग :-
श्राद्धकाल में पुरूषसूक्त,श्रीसूक्त,सौपर्णाख्यान, श्रीभागवतगीता, ऎन्द्रसूक्त,सोमसूक्त,सप्तार्चिस्तव,मधुमती अथवा अन्य किसी पुराणादि का पठन-श्रवण अवश्य करना चाहिए.

अन्त में एक बात, कि श्राद्ध में भोजन के समय मौन रहना चाहिए. माँगने या प्रतिषेद करने का इशारा हाथ से करना चाहिए. खाना खाते हुए पंडित जी से यह नहीं पूछना चाहिए कि "खाना कैसा है ?", अन्यथा पितर निराश होकर लौट जाते हैं.