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अंक ज्योतिष-- प्राथमिक परिचय

सूर्य, चन्द्र, बुध आदि नवग्रह और मेष, वृष आदि समस्त बारह राशियों तथा पृथ्वी को भी एक विकिरण तरंग पैदा करने वाले ग्रहों की मान्य सूची में रखकर पैदा हुए व्यक्तियों के सम्बोधन ध्वनियों के नामाक्षर के भाग्यवादी विश्लेषण का दूसरा नाम है---अंक ज्योतिष.

यद्यपि भारतीय ज्योतिष विज्ञान आज बहुत सक्षम और सूक्ष्म गणनाओं के आधार पर जीवन के सांगोपांग विश्लेषण का एक माध्यम बन चुका है, परन्तु भविष्य बतलाने में अंक ज्योतिष भी अपने आप में अदभुत सामर्थ्य रखता है. बस इसके लिए आपको अपने नाम के शुद्ध अंग्रेजी वर्णाक्षर का ज्ञान होना चाहिए.

आपका नाम आपके लिए कितना भाग्यशाली या अनुकूल है, इसकी जानकारी भी आप बेहद सरलता से अंक ज्योतिष के माध्यम से कर सकते हैं.

अंक ज्योतिष के प्रसंग में यह भी एक रोचक तथ्य है कि इसके फलित सूत्र सदैव अकाटय हैं और जिन्हे पूरे विश्व के सभी सभ्य समाजों में आज भी पूर्ण विश्वास के साथ अंगीकार किया जा रहा हैं. मेरा कौन सा भाग्यशाली अंक है ? या फिर कौन सा विपरीत अंक ऎसा है, जो हमारे लिए कष्ट एवं विपरीतता का माहौल पैदा कर रहा है?----इसमें सिर्फ अंक ज्योतिष ही आपकी मदद कर सकता है. इसमें न तो कोई जटिलता है और न ही इसके लिए कोई लम्बा-चौडा हिसाब किताब करना पडता है. बस आपको जन्मकुंडली या सही जन्म समय का ज्ञान अवश्य होना चाहिए.

यह निर्विवाद सत्य है कि मानव मन की थाह पाने के लिए आजतक किसी उपकरण या मशीन का इजाद नहीं हो पाया है, भले ही चाँद तारों तक पहुंचने के लिए अन्तरिक्ष यान बना लिए गये. लेकिन भारतीय ज्योतिष और उसका ही एक अंग अंक ज्योतिष ही एकमात्र ऎसा माध्यम है, जिसके जरिये किसी भी सचेतन प्राणी की गति-प्रगति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है.
दरअसल अंकों का प्रयोग किसी भी वस्तु की संख्यात्मक मूल्यों की अभिव्यक्ति के लिए होता है, जिसमें इकाई एक आधार है. इकाई का समग्र अर्थ शून्य अर्थात जीरो से है. जीरो से ही सारे अंक निकलते हैं और फिर जीरो में ही विलीन हो जाते हैं. अर्थात ब्राह्मण्ड(शून्य) सभी ग्रहों(अंकों) की गोद है, जिसमें ये सूर्यादि समस्त ग्रह समाहित हैं.

आपका प्रधान ग्रह केतु हो तो...


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यदि आपका मुख्य ग्रह राहु हो तो...



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आपका प्रधान ग्रह शनि हो तो...


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आपका प्रधान ग्रह शुक्र हो तो...


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आपका प्रधान ग्रह गुरू हो तो...


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आपका प्रधान ग्रह मंगल हो तो...


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आपका प्रधान ग्रह चंद्रमा हो तो...


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आपका प्रधान ग्रह बुध हो तो...


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आपका प्रधान ग्रह सूर्य है तो...

अगर आपकी कुंडली का प्रधान (मुख्य ग्रह) सूर्य है तो उसके द्वारा आपके जीवन में क्या प्रभाव रहेंगे? यही इस आलेख में देखेंगे.

सूर्य जीवन शक्ति की धुरी है, सूर्य है तो जीवन है, समस्त संसार को प्रकाश देने का कार्यभार इसी के जिम्मे है. ना केवल आध्यात्म अपितु वैदिक ज्योतिष में भी सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है. यह अग्नि तत्व, चित प्रधान, पुरूष एवम पूर्व दिशा को सूचित करता है. यह हृदय और जीवन शक्ति का कारक ग्रह भी है. यह व्यक्ति में अहम भाव का द्योतक है "मैं" व्यक्ति के अहम की निशानी है, जो कि इसके अशुभ होने के का संकेत है. जन्मकुंडली में इसके शुभ होने पर "मैं" के स्थान पर "मैं हूं" मे से अहम भाव लुप्त हो जाता है. शरीर एवम व्यक्तित्व का द्योतक होने के कारण ही यह जन्मकुंडली में प्रथम भाव में उच्चता प्राप्त करता है.

जीवन दायिनी शक्ति से संपन्न यही ग्रह जन्मकुंडली के अन्य समस्त ग्रहों का संचालक है. क्योंकि समस्त ग्रह एक मात्र इसी से तेज को प्राप्त करते हैं. इसके प्रभावाधीन जातक उदार, सदकमों की कामना करने वाला, अधिकार संपन्न, अहिंसक, निर्बल पर दया करने वाला एवम परोपकारी प्रवृति का स्वामी होता है. इसके विपरीत सूर्य यदि जन्मकुंडली में निर्बल हो तो जातक घमंडी, अहम भाव से भरपूर, मित्या अभिमानी, अपनी बडाइ स्वयं करने वाला, अधिकारों का दुरूपयोग करने वाला एवम हिंसक प्रवृति का मालिक होता है. सूर्य बलवान हो तो राजा समान पद, महत्वाकांक्षा, अधिकार की भावना, स्वाभिमानी, अपनी शक्ति सामर्थ्य द्वारा ही जीवन में उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने वाला, निज पर भरोसा करने वाला, शूरवीर, चतुर, बल बुद्धि विद्या संपन्न, स्पष्ट वक्ता, गंभीर प्रवृति, तेजस्वी, उदार हृदय, निज बुद्धि बल से शत्रुओं को परास्त करने वाला एवम श्रेष्ठ आचरण युक्त होता है.

आत्मा, शरीर, पिता, राज्य प्रशासक, नेता, स्वभाव शक्ति, सम्मान, अधिकार, दाहिना नेत्र, हृदय, अग्नि, चरित्र, सदगुण, स्वयं, तेज, विद्या एवम हृदय को प्रभावित करने वाला एक मात्र यही ग्रह है. व्यक्ति की व्यावसायिक उन्नति, एवम रोजगार की स्थिति भी सूर्य की सबलता/निर्बलता पर ही निर्भर करती है. क्योंकि यह दशम कर्म भाव का स्वाभाविक एवम स्थायी कारक ग्रह है.

रोग - गर्मी एवम जिगर से संबंधित रोग, आंखें विशेषत: दाहिनी आंख, दांत, तंतु प्रणाली के रोग, हृदय की धडकन, पागलपन, मुंह से झाग से आना, शरीर के विभिन्न अंगों का सचालन, जीवन शक्ति क्षीण होते जाना....सूर्य के विपरीत प्रभाव के फ़लस्वरूप होने वाले रोगों के सूचक हैं. यदि सूर्य एवम बुध संयुक्त रूप से जन्मकुंडली में कहीं भी स्थित हों तो रक्तचाप के सूचक होते हैं.

सूर्य के अशुभ होने की निशानी -
साधारणतया बहुत अधिक नमक खाना, जीवनीशक्ति क्षक्ति क्षीण होते जाना, नजर (विशेषत: दाहिनी आंख) कमजोर होती जाये, संतानहीनता, अथवा पुत्र पर संकट सूर्य के अशुभ होने के संकेत हैं.

मकान की स्थिति - यदि सूर्य बलवान है तो वय्क्ति के मकान की हालत बढिया होती है एवम उसका पैतृक मकान किसी विशेष गली मोहल्ले या पाश कालोनी में होगा. जन्मकुंडली के जिस भाव में सूर्य स्थित होगा, उस दिशा के कमरे में प्रकाश एवम धूप अवश्य आती होगी. उस ओर ही सरकार से संबंधित वस्तुएं यथा सरकारी डाक्युमैंट इत्यादि रखने का स्थान होगा.