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शिक्षा पूर्ण होगी अथवा अपूर्ण रहेगी?

बालक की शिक्षा कैसी होगी? यह विषय प्रत्येक माता पिता को चिंतित रखता है. और वैसे भी आज पालकों का जोर बच्चों को किसी भी प्रकार से उच्च शिक्षा दिला कर उनको स्थापित करना होता है. जन्मकुंडली द्वारा सहज रूप से यह पता लगाया जा सकता है कि जातक की शिक्षा दीक्षा कैसी होगी?

अगर जन्मकुंडली में पंचमेश उच्च का या स्वग्रही होकर केंद्रों अथवा त्रिकोणों में अवस्थित हो तो बहुत ही सुंदर विद्या योग बनता है. ऐसा जातक अल्प प्रयत्न से ही अच्छी शिक्षा हासिल कर लेता है. यह योग तभी बनेगा जब पंचम भाव में मेष, मिथुन, तुला या कुंभ राशि हो. इसका मतलब यह हुआ कि यह योग धनु, कुंभ, मेष, तुला एवम मिथुन लग्नों में अति प्रभवाशाली बनेगा. लग्न एवं पांचवे भाव में ये राशियां विद्या दायक होती हैं. ध्यान रहे सिंह लग्न में पंचम भाव में धनु राशि आयेगी जो अपवाद स्वरूप है. पंचम भाव में धनु राशि अपूर्ण विद्या की सूचक है.

मेष लग्न में अगर पंचम भाव में सूर्य स्वग्रही हो तो पूर्ण विद्या योग होगा. इस योग वाला जातक जिस भी क्षेत्र में विद्यारंभ करेग उसमें पूर्ण सफ़लता हासिल करता है. सूर्य ज्ञान और प्रकाश का दाता है. पंचम पर इसका प्रभाव जातक को विद्या, बुद्धि, धन एवम पुत्र प्रदान करने में पूर्ण सक्षम होता है.

इसी तरह कुछ विद्या में बाधक योग भी बनते हैं. वॄष, मकर, कन्या एवम सिंह लग्न में यही राशियां पंचम भाव में होगी तब यह योग घटित होगा. जनम्कुंडली अन्य कोई शुभ योग की न्यूनता हो तो ऐसे जातक के विद्याध्ययन में बहुत सी बाधायें आ खडी होती हैं. कुछ ऐसे हालात बन जाते हैं कि विद्या अध्ययन बीच मे छोडने की संभावना प्रबल होती है.

यदि पंचमेश पापग्र्हों के प्रभाव में हो और चठे आठवे या बारहवें भाव में स्थित हो तो यह अध्ययन को भंग करने वाला है. ऐसा जातक अपने शिक्षाकाल में एक दो बार फ़ेल अवश्य होता है. ऐसे जातक के अन्य ग्रह अगर शुभ प्रभाव में हों तो रूक रूक कर शिक्षा चलती रहती है परंतु जातक अपने लक्ष्य को हासिल करने में असफ़ल ही रहता है. यदि जनमकुंडली में ऐसे योग विद्यमान हों तो जातक को सरस्वती यंत्र की पूजा करे और पंचमेश का रत्न किसी योग्य दैवज्ञ की सलाह से धारण करें.